‘मशीनें काम को आसान बना देती हैं, मशीनें आगाज को अंजाम बना देती हैं. यदि सलीके से इन का इस्तेमाल करें तो मशीनें किसानों को धनवान बना देती हैं.’

आज के माहौल में ये लाइनें बेहद मौजूं लगती हैं, क्योंकि मशीनों से काम जल्दी, बेहतर व कई गुना ज्यादा होता है. यह बात अलग है कि ज्यादातर मशीनें महंगी होने की वजह से आम किसानों की पहुंच से बाहर हैं. वैसे सरकार खेती की मशीनों की खरीद पर कर्ज व छूट भी देती है, मगर इस के बावजूद ज्यादातर छोटे किसान मशीन खरीदने की कूवत नहीं रखते. ऐसे में खेती के लिए किफायती मशीनों की बहुत जरूरत है.

अब गांवों के ज्यादातर मजदूर बेहतर रोजगार व ज्यादा कमाई के लिए शहरों की ओर निकल जाते हैं, लिहाजा खेती के लिए अब आसानी से मजदूर मयस्सर नहीं होते. नतीजा यह है कि खेती के ज्यादातर काम अब मशीनों से करना एक मजबूरी हो गई है. कारगर मशीनों से काम करना अच्छा व आसान लगता है, क्योंकि उन से वक्त कम लगता है और मेहनत बचती है.

किफायती काम

हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो खुद बड़े वैज्ञानिक या इंजीनियर नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने तजुरबे व जुगत से कामयाब व किफायती मशीनें बनाई हैं. मसलन कर्नाटक में मुदिगिरी तालूका के डाराडहली गांव के एक पशु चिकित्सक डॉ. श्रीकृष्ण राजू ने बेहद सस्ता व छोटा गोबरगैस प्लांट बनाया है.

बड़े गोबरगैस प्लांट में करीब 20-25 हजार रुपए खर्च होतेहैं. उस से गैस हासिल करने के लिए रोज बहुत सारा गोबर भी जरूरी होता है, जो सब के बस की बात नहीं है, क्योंकि आम किसानों के पास जानवर कम होते हैं. लेकिन यदि सिर्फ 1 बाल्टी गोबर भी रोज जमा हो जाए तो सिर्फ 3 हजार रुपए में भी एक मिनी गोबरगैस प्लांट लगाया जा सकता है.

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