प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक नोटबंदी का जो फैसला देश पर थोपा, उस से आम आदमी पर क्या फर्क पड़ा, उस ने क्या क्या झेला किसी से छुपा नहीं है. दुख की बात तो यह है कि करीब सवा सौ लोगों की मौत और इतनी परेशानियां झेलने के बाद भी यह अभियान पूरी तरह सफल नहीं हो पाया. अलबत्ता नरेंद्र मोदी की हठधर्मिता जरूर पूरी हो गई.

बात यहीं तक सीमित होती तब भी  ठीक था, लेकिन भगवा ब्रिगेड के कंधों पर खड़े नरेंद्र मोदी ने अब नई जिद पकड़ ली है, देश को कैशलेस बनाने की, जो इतना आसान नहीं है. आश्चर्य की बात तो यह है कि बिना संपूर्ण संसाधनों के नरेंद्र मोदी देश को उस रास्ते पर ले जाना चाहते हैं, जिस में खतरे ही खतरे हैं. जबकि यह तभी संभव हो सकता है, जब पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर के अलावा सरकार आईटी कंपनियों और बैंक के उच्चाधिकारियों के साथ बैठ कर रणनीति तैयार करे.

इस वक्त देश में कुल जमा 2.05 लाख एटीएम मशीनें हैं और 14.5 लाख पीओएस (पौइंट औफ सेल) मशीनें. जबकि डेबिट कार्डों की संख्या 69.17 करोड़ है और क्रेडिट कार्ड धारक 2.5 करोड़ हैं. अनुपात के हिसाब से एटीएम और पीओएस दोनों ही कम हैं. इस मामले में देहात क्षेत्रों और कस्बों की स्थिति तो और भी गंभीर है.

कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए डेबिट और क्रेडिट कार्डों के बाद नंबर आता है इंटरनेट और इंटरनेट युक्त मोबाइल यूजर्स का. ई-बैंकिंग की बात करें तो 132 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में 33 करोड़ इंटरनेट यूजर्स और 1.02 अरब मोबाइल यूजर्स हैं. इतनी बड़ी संख्या में मोबाइल यूजर्स होने के बावजूद केवल 33 प्रतिशत यूजर्स ही मोबाइल में इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. इन में भी बैंकिंग करने वाले कम ही हैं. ऐसे में इंटरनेट बैंकिंग कैसे संभव है?

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