उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने व औरतों के प्रति होने वाले अपराधों को कम करने के लिए जितनी कोशिश कर रही है, उत्तर प्रदेश पुलिस उस पर लगातार कालिख पोतने का काम कर रही है. पुलिस महकमे की करतूतें प्रदेश सरकार को शर्मसार कर रही हैं. बदायूं कांड के बाद बाराबंकी के कोठी थाने में आंगनबाड़ी में काम करने वाली नीतू द्विवेदी की जल कर मौत हो गई. नीतू की मौत अपने पीछे ऐसे सवाल छोड़ गई है, जिन के जवाब देना सरकार के लिए नामुमकिन है. विरोधियों को एक बार फिर यह आरोप लगाने का मौका मिल गया है कि समाजवादी सरकार के कार्यकाल में पुलिस महकमा ज्यादा ही तानाशाह हो जाता है. बाराबंकी जिले के पुलिस अफसर लगातार इस कोशिश में हैं कि वे यह साबित कर दें कि नीतू को थाने में पुलिस ने नहीं जलाया, बल्कि उस ने खुद आग लगाई थी. दूसरी ओर जलने के बाद नीतू ने 2 दिन तक जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष किया. वह बाराबंकी के जिला अस्पताल से लखनऊ के सिविल अस्पताल तक तड़पती रही. इस बीच उस ने मरने से पहले बयान दिया, जिस में बारबार कहा कि उसे कोठी थाने में एसओ यानी थानाध्यक्ष राय साहब यादव और एसआई अखिलेश राय ने जलाया.

अस्पताल में भरती नीतू ने बारबार कहा कि उस की मुलाकात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कराई जाए. वह उन को सच बताना चाहती है. वह मुख्यमंत्री से मांग करना चाहती थी कि उसे जलाने वालों को फांसी दी जाए. नीतू का इलाज लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में चल रहा था.  उस से केवल 500 मीटर दूर 5, कालीदास मार्ग पर मुख्यमंत्री का सरकारी आवास है. नीतू अपना दर्द मुख्यमंत्री को बिना सुनाए इस दुनिया से विदा हो गई.

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