मम्मी, पापा मुझे माफ कर देना, मैं हमेशा के लिए जा रही हूं, मैं स्वेच्छा से फांसी लगा रही हूं, आई लव यू.’’
--प्रेरणा.

यह 4 वाक्यों का सुसाइड नोट है. 16 वर्षीय पे्ररणा निभोरे का घर का नाम पिंकी था. वह भोपाल के हबीबगंज क्षेत्र में रहती थी. घर में मातापिता के अलावा 2 बहनें और एक भाई भी है. घर के मुखिया देवचंद निभोरे पेशे से वैल्डर हैं. बीती 24 दिसंबर की सर्द रात में साढ़े 3 बजे वे बाथरूम जाने उठे तो उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी को अपने कमरे में दुपट्टे के सहारे फांसी पर झूलते देखा. देवचंद की नींद, होश, चैन, सुकून सब एक झटके में उड़ गए. 25 दिसंबर को वे सकते और सदमे की सी हालत में थे. उन के चेहरे पर क्षोभ, ग्लानि और शर्ंमदगी के मिलेजुले भाव थे. पिंकी ऐसा भी कर सकती है, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. सूचना मिलने पर पुलिस आई, जांचपड़ताल की तो पता चला, प्रेरणा अकसर बीमार रहती थी. उसे चक्कर आते थे और कभीकभी दौरा भी पड़ता था.

प्र्रेरणा एक कहानी थी जो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई. लेकिन इस कहानी के दूसरे किरदारों की हालत भी मुर्दों से कम नहीं. उस की दोनों बहनों का रोतेरोते बुरा हाल था. वे कभी मां को ढाढ़स बंधातीं जो रोतेरोते अचेत हो जाती थीं तो सहम कर, वे भाई से लिपट कर रोने लगती थीं जिस का स्वेटर आंसुओं से भीगा था. इन तीनों की यह गुहार सुन कर मौजूद लोग भी रोंआसे हो उठते कि कोई तो पिंकी को वापस ला दे. प्रेरणा एकदम अबोध या नादान नहीं थी. उस की परेशानी जो भी रही हो, उस के साथ चली गई. लेकिन उसी के महल्ले में महज 4 घर दूर कुछ महिलाएं चर्चा कर रही थीं कि बीमारी तो बहाना है. जरूर कुछ और बात है जो छिपाई जा रही है, आखिर लड़की जवान जो थी.

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