कुछ समय पहले गाजियाबाद की 24 वर्षीय युवती दीप्ति सरना, जो एक नामीगिरामी कंपनी में लीगल ऐग्जिक्यूटिव थीं, सुर्खियों में रहीं. कारण था, दीप्ति का दफ्तर से घर लौटते समय गायब होना, फिर 36 घंटे बाद घर लौटना, पता चला कि आपराधिक रिकौर्ड वाले देवेंद्र जिस का दिल दीप्ति पर आ गया था, के साथियों ने दीप्ति को अगवा कर लिया था.

पिछले एक साल में देवेंद्र ने दीप्ति का 150 बार पीछा किया था. दीप्ति कुछ दिन तक सदमे में रही और डर के मारे नौकरी छोड़ने तक की सोच चुकी थी. पुलिस की पूछताछ में सामने आया कि देवेंद्र ने फिल्म ‘डर’ से प्रेरित हो कर इस घटना को अंजाम दिया.

फिल्म ‘रांझना’ में भी इसी तरह हीरो को हीरोइन का पीछा करते, उसे अपने प्यार के लिए मनाने हेतु जबरदस्ती अपनी कलाई काटते दिखाया गया है, तो क्या यह भावना कि ‘होंठों पर तेरे ना है लेकिन दिल में हां है’, हमेशा बरकरार रहेगी? क्या हमारा समाज पश्चिमी समाज की भांति एक युवती की ना का मतलब ना स्वीकारना नहीं सीखेगा?

1996 में दिल्ली विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई कर रही छात्रा प्रियदर्शनी मट्टू की उस के अपने ही घर में बलात्कार के बाद गला घोंट कर हत्या कर दी गई थी. अपराध करने वाला संतोष सिंह कालेज में प्रियदर्शनी का सीनियर था और 2 वर्ष से उस का पीछा कर रहा था. प्रियदर्शनी ने उस के खिलाफ पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई थी और उसे पुलिस द्वारा संरक्षण भी दिया गया था, लेकिन मौका पा कर उस ने अपराध को अंजाम दे दिया. इसी तरह 2011 में दिल्ली विश्वविद्यालय की एक और छात्रा 20 वर्षीय राधिका तंवर की उस का पीछा करने वाले 25 वर्षीय विजय ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. कारण था बदला. विजय राधिका को करीब ढाई साल से परेशान कर रहा था और कुछ समय पूर्व राधिका के मित्रों ने विजय को राधिका का पीछा करने के लिए पीट दिया था.

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