पुलिस की 25 साल से भी ज्यादा नौकरी कर चुके 59 साला सबइंस्पैक्टर मोहन सक्सेना को मध्य प्रदेश के मालवा इलाके के शहर शाजापुर में हर कोई जानता था. इस की एकलौती वजह यह नहीं थी कि वे पुलिस महकमे में थे और वरदी पहन कर शहर में निकलते थे, तो लोग इज्जत से सिर झुका कर उन्हें सलाम ठोंकते थे. दूसरी वजह थी उन का एक इज्जतदार कायस्थ घराने से होना. तीसरी अहम वजह जो बीते 2 साल में पैदा हुई थी, वह उन की बहू मालती (बदला नाम) थी, जिस के बारे में हर कोई जानता था कि वह ड्राइवर अंकित चौरसिया से अकसर चोरीछिपे मिला करती थी.

दुनियाभर के लोगों को सही रास्ते पर आने की नसीहत देने वाले दारोगाजी खुद अपनी बहू के बहकते कदम नहीं संभाल पा रहे थे. खून तो खूब खौलता था, लेकिन क्या करें यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.

यों बहकी बहू

24 साला अंकित चौरसिया पेशे से ड्राइवर था, जो फिलहाल शाजापुर की ही एक मालदार व इज्जतदार औरत निर्मला गौर की कार चला रहा था. गोराचिट्टा खूबसूरत बांका अंकित खुशमिजाज और बातूनी था. जल्दी ही वह घर के सभी लोगों से घुलमिल गया था. इस के पहले वह मोहन सक्सेना की कार चलाता था. लेकिन 25 साला बहू मालती ड्राइवर अंकित चौरसिया से जरूरत से ज्यादा घुलमिल गई थी. शुरू में तो किसी ने इस बात पर गौर नहीं किया, लेकिन जल्दी ही वे दोनों चोरीछिपे मिलनेजुलने लगे और उन के प्यार की सुगबुगाहट दारोगाजी के कानों में पड़ी, तो उन्होंने तुरंत अंकित को नौकरी से निकाल दिया और आइंदा मालती से दूर रहने की धमकी दे डाली. यह नसीहत और धौंस बेकार साबित हुई. अंकित की नौकरी छूटी थी, महबूबा नहीं. लिहाजा, वह मोहन सक्सेना और नितिन की परवाह किए बिना मालती से मिलता रहा.

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