धर्म का प्रचार करने वाले बाबा धार्मिक शिक्षा देने का आडंबर करते हैं. रूढि़वादी विचारों में फंसे लोग आंख पर धर्म के अंधविश्वास की पट्टी बांध कर इन की बातों पर यकीन कर अपना सबकुछ इन को सौंप देते हैं.  जब इन की सचाई सामने आती है तब लोगों की आंखें खुलती तो हैं पर तब तक काफी देर हो चुकी होती है. धार्मिक अंधविश्वास का प्रचार करने वाले बाबा टाइप लोग नए आडंबर के सहारे लोगों को बरगलाने में जुट जाते हैं. लोगों को मायामोह से दूर रहने की शिक्षा देने वाले ये बाबा खुद करोड़पति हो जाते हैं. करोड़ों की संपदा कहां से आती है, इस का एक ही जबाव होता है कि यह भक्तों ने दान में दिया है. दान का गणित ही बाबाओें की अमीरी का आधार स्तंभ होता है.

उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के जवाहरबाग राजकीय उद्यान केंद्र की 270 एकड़ जमीन पर स्वाधीन भारत सुभाष सेना के अगुआ रामवृक्ष यादव ने 2 साल से अधिक समय तक अवैध कब्जा कर रखा था. कोर्ट के आदेश के मद्देनजर जिला प्रशासन ने जब अवैध कब्जा हटाने की कोशिश की तो संघर्ष में एसपी सिटी और थानाध्यक्ष सहित 29 लोगों की जान चली गई. इस के पीछे की मूल वजह धार्मिक आडंबर और उस का राजनीतिक संरक्षण है. रामवृक्ष यादव मूलरूप से बाबा जय गुरुदेव का चेला था. जय गुरुदेव मरने से कुछ समय पहले रामवृक्ष यादव को अपने से दूर कर चुके थे. बाबा जय गुरुदेव के मरने के बाद उन की करोड़ों रुपए की जायदाद के बंटवारे को ले कर रामवृक्ष यादव और बाबा के ड्राइवर पंकज यादव के बीच झगड़ा हुआ था. अंत में पंकज यादव बाबा का उत्तराधिकारी बनने में सफल रहा. इस बात का मलाल रामवृक्ष यादव को हमेशा रहा. रामवृक्ष ने बाबा जय गुरुदेव की ही तरह आश्रम बनाने का फैसला किया. जिस के फलस्वरूप उस ने मथुरा के जवाहरबाग पर कब्जा किया. जय गुरुदेव की ही तरह रामवृक्ष यादव ने भी अपने राजनीतिक संबंध बनाए हुए थे. इस कारण ही उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा रामवृक्ष को लोकतंत्र सेनानी पैंशन भी दी गई. जो व्यक्ति सरकारी संपत्ति पर अवैध कब्जा करने का दोषी हो उस को सरकारी पैंशन दिए जाने का फैसला सवालों के घेरे में है.

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