विकास की राह पर अग्रसर हो रहे मुल्क के ज्यादातर हिस्से अतिक्रमण के कैंसर से जूझ रहे हैं. रेलवे लाइन, बाजार, गलीनुक्कड़ से ले कर राजमार्गों तक फैले इस अतिक्रमणरूपी कैंसर की पूरी कहानी पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव के इस लेख में.

भोपाल रेलवे स्टेशन से ट्रेन जब चलती है तब उस की रफ्तार महज 30 किलोमीटर प्रति घंटा होती है जबकि 3-4 साल पहले तक यह गति 110 किलोमीटर प्रति घंटा हुआ करती थी. रफ्तार धीमी होने की वजह रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ नाजायज तरीके से बनी हजारों झुग्गियां और कच्चे मकान हैं. वे कब, कैसे और क्यों उग आए, इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं, अगर है भी तो सिर्फ सूचनात्मक कि यह अतिक्रमण है. इस अतिक्रमण से यात्रियों की सुरक्षा को खतरा है. इतना ही नहीं, इन नाजायज कब्जों से रेलवे ट्रैक कमजोर भी हो रहा है.

यह समस्या अकेले भोपाल की नहीं, बल्कि पूरे देश की है. राजधानी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में रेलवे ट्रैक के नजदीक इफरात से झुग्गियां देखने को मिल जाती हैं. वजीरपुर, सरायरोहिल्ला, दयाबस्ती, आजादनगर, तिलक ब्रिज, ओखला, शकूरबस्ती, निजामुद्दीन, किशनगंज आदि स्टेशनों के आसपास की पटरियों पर बनी झुग्गियां रेलवे के लिए सिरदर्द बनी हुई हैं.

दिल्ली अरबन शैल्टर इंप्रूवमैंट बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की 60 हैक्टेअर जमीन पर तकरीबन 46,693 झुग्गियां नाजायज तरीके से बनी हुई हैं. इन में लगभग 10 हजार सेफ्टी जोन में यानी रेलवे ट्रैक के 15 मीटर अंदर हैं. दिल्ली से आनेजाने वाली ट्रेनों में बैठे मुसाफिर धीमी गति के लिए भले ही रेलवे को जिम्मेदार ठहरातेकोसते रहें पर यह हकीकत उन्हें नहीं मालूम रहती कि नाजायज कब्जे वाली झुग्गियों और कच्चे मकान हटाने के लिए रेलवे दिल्ली सरकार को करोड़ों रुपए का भुगतान कर चुका है. एक झुग्गी हटाने के लिए रेलवे दिल्ली सरकार को 1,07,590 रुपए देता है पर भुगतान करने के बाद भी अतिक्रमण नहीं हटाया जा रहा, जिस का खमियाजा आम यात्रियों को भुगतना पड़ता है.

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