घूसखोरी का जहर समाज की नसनस में किस कदर भर चुका है, यह मध्य प्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले से समझा जा सकता है. इस फर्जीवाड़े में शिक्षक, अभिभावक और नौकरशाह, सभी के हाथ कालिख से पुते हैं. सालों से युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करते शिक्षा माफिया के बारे में पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव की रिपोर्ट में.
सरिता के दिसंबर (द्वितीय) 2013 के अंक में लेख ‘प्री मैडिकल टैस्ट का फर्जीवाड़ा’ जब प्रकाशित हुआ था तब आरोपियों की संख्या दहाई अंक में थी जो अब बढ़ कर 3 अंकों यानी सैकड़ों में पहुंच गई है और फर्जी तरीकों से दाखिला लेने वालों की वास्तविक संख्या तो हजारों में जा रही है.
अभी भी हर हफ्ते इस महाफर्जीवाड़े में चौंका देने वाला एक नया खुलासा होता है तो लोगों को लगता है यह आखिरी था पर 8-10 दिन बाद ही कोई नया या सफेदपोश चेहरा गिरफ्त में आता है तो लोगों की हैरानी और बढ़ जाती है कि इस व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं घोटाले का मुंह तो सुरसा के मुंह जैसा है जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पर बड़ी हैरानी लोगों को इस बात की है कि क्यों पूर्व तकनीकी शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को एसटीएफ आरोप तय और साबित हो जाने के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर रही है. पहले वाहवाही लूटने वाली एसटीएफ के कार्यवाही करने के तरीके पर अब खुलेआम उंगलियां उठने लगी हैं कि वह या तो दबाव में काम कर रही है या फिर खुद इस का हिस्सा बन गई है.
इस शक की पुष्टि इस बात से भी होती है कि व्यापमं घोटाला के एक और प्रमुख आरोपी कांग्रेसी नेता संजीव सक्सेना का नाम एक आरोपपत्र से गायब हो गया. इस घोटाले को ले कर कांग्रेस लगातार धरनेप्रदर्शन कर रही है. उसे छात्रों से लगाव कम है, लोकसभा चुनाव में इसे भुनाने की मंशा ज्यादा है. ऐसे में शिवराज सिंह की ढिलाई पर भी शक होना स्वाभाविक है जो खुद अपनी सरकारी एजेंसी व्यापमं से कह रहे हैं कि अब गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए यानी जो गड़बडि़यां हो चुकीं उन पर केवल बयानबाजी और मुंह चुराने के सिवा उन के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.
घोटालों में राजनेता, दलाल, अफसर, पुलिस वाले, कालेज चलाने वाले, कोचिंग करने वाले और दीगर कारोबार करने वाले भी शामिल हैं जो बीते 10 सालों से गिरोहबद्ध तरीके से फर्जीवाड़े को अंजाम देते व युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हुए अरबोंखरबों रुपए उगाह रहे थे.
व्यापमं घोटाले में चार्जशीट रिकौर्ड
40 हजार पृष्ठों की दाखिल हुई है. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि घोटाला कितने बड़े पैमाने पर हुआ होगा. इस मामले में ये पंक्तियां लिखे जाने तक लगभग 300 लोगों को आरोपी बनाया जा चुका था और अंदाजा है कि इस से कम से कम चारगुना और ज्यादा लोग धरे जाएंगे. यह दीगर बात है कि इन में से अब अधिकांश छात्र और उन के वे अभिभावक होंगे जिन्होंने प्री मैडिकल टैस्ट यानी पीएमटी में उत्तीर्ण होने के लिए अपनी हैसियत और सौदेबाजी के मुताबिक घूस दी थी.
घोटाले का खुलासा
व्यापमं कई प्रतियोगी व प्रवेश परीक्षाएं भी आयोजित करता है जिन से सीधेसीधे नौकरी या गारंटेड नौकरी वाली डिगरी मिलती है, जैसे एमबीबीएस की, जो इस घोटाले की बड़ी वजह बनी.
इस फर्जीवाड़े के खुलासे की शुरुआत जुलाई, 2013 से हुई जब इंदौर का एक डाक्टर जगदीश सागर एक छात्र को फर्जी तरीके से प्री मैडिकल टैस्ट यानी पीएमटी पास कराने के आरोप में धरा गया था. फिर बाद में जो पर्तें उधड़नी शुरू हुईं तो उन के अभी तक बंद होने का सिलसिला थम नहीं रहा.
एक के बाद एक 15 जनवरी, 2014 तक कोई 350 छात्र ऐसे पकड़े गए जिन्होंने अयोग्य होते हुए पैसों के दम पर पीएमटी पास कर एमबीबीएस में दाखिला ले लिया था. ऐसे छात्रों की तादाद हजारों में है जो धीरेधीरे मामले की जांच कर रही एसटीएफ यानी स्पैशल टास्क फोर्स की पकड़ में आ रहे हैं.
नाकाबिल छात्रों को पास कराने के लिए यह गिरोह इम्तिहान में उन की जगह दूसरे छात्रों को बैठा लेता था, भाड़े के काबिल छात्रों, जिन्हें स्कोरर कहा जाता है, को उन के आसपास रोल नंबर आवंटित कराता था और इस पर भी बात न बने तो उन की कोरी रखी कौपियों में परीक्षा होने के बाद वैकल्पिक उत्तरों वाले इस इम्तिहान में सही उत्तर वाले गोले पर निशान लगवाता था.
यह सब बेहद योजनाबद्ध तरीके से होता था. पीएमटी के दलाल ऐसे अभिभावकों से या अभिभावक ही दलालों से संपर्क कर सौदा तय करते थे जो
5 लाख से ले कर 20 लाख रुपए तक में तय होता था.
तरीका चल निकला तो व्यापमं के लालची और भ्रष्ट कर्मचारी व अफसरों ने इसे धंधा ही बना लिया और देखते ही देखते मैडिकल कालेज मुन्ना भाइयों से भरने लगे. 2003 से इस फर्जीवाड़े ने पांव पसारे तो 2013 तक पीएमटी में प्रवेश के माने पैसे भर रह गए. मध्य प्रदेश के इस शिक्षा माफिया का सरदार कौन था या कौन है, यह तय कर पाना मुश्किल है पर इस के पात्र अपनी भूमिका को बखूबी अंजाम दे रहे थे.
जाल में मगरमच्छ
व्यापमं घोटाले में शुरू में मछलियां पकड़ी गईं यानी वे दलाल जो ग्राहक ढूंढ़ कर लाते थे और व्यापमं के वे मुलाजिम जो हेरफेर करते थे लेकिन अंदेशा था कि इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े को बगैर किसी मगरमच्छ यानी राजनीतिक संरक्षण के अंजाम नहीं दिया जा सकता.
यह अंदाजा सच के बेहद आसपास है. बीती 23 दिसंबर को कार्यवाही के दौरान तकनीकी और उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा अचानक एसटीएफ के एडीजी सुधीर शाही के सामने पेश हुए. उन के यों पेश होने के माने अलग थे जो हालिया विधानसभा चुनाव विदिशा की सिरोंज सीट से हार चुके थे. यह हार अप्रत्याशित थी क्योंकि उन्हें अगला सीएम तक कहा जाने लगा था. संस्कृति और जनसंपर्क जैसे अहम व मलाईदार विभाग भी लक्ष्मीकांत शर्मा के पास थे.
दरअसल, एसटीएफ ने अपनी पूछताछ की बिना पर लक्ष्मीकांत शर्मा के खिलाफ 7 और 9 दिसंबर, 2013 को 2 एफआईआर दर्ज की थीं. जाहिर है वे वकील की सलाह पर गिरफ्तारी से बचने के लिए खुद पेश हुए थे. पूछताछ में शर्मा बेचैन भी दिखे और नर्वस भी. वे लगातार खुद के बेगुनाह होने की बात दोहराते रहे. उन की हार से करारा झटका मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लगा था. सिरोंज की जनता को एहसास था कि उन का विधायक मंत्री कुछ नहीं, बहुतकुछ गलत कर रहा है.
बहरहाल, जिस हैरतअंगेज तरीके से लक्ष्मीकांत शर्मा पेश हुए थे उस से ज्यादा हैरतअंगेज तरीके से एसटीएफ ने उन्हें छोड़ भी दिया. तय है यह आरएसएस के दबाव पर ही मुमकिन था जिस की शरण में वे एफआईआर दर्ज होते ही हाजिर हो गए थे. इसी दौरान उमा भारती का नाम भी इस घोटाले में आया तो सियासी और प्रशासनिक गलियारों में सन्नाटा खिंच गया. उमा बिफरीं तो खुद एडीजी नंदन दुबे उन के घर गए और खेद व्यक्त करते कहा कि उन का नाम यों ही आ गया था.
अब तक शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व पर प्रदेश की जनता मुहर लगा चुकी थी, इसलिए यह माना जा रहा था कि लाखों छात्रों की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाले इस घोटाले पर भी लीपापोती की जानी तय है.
ऐसा होता भी. पर इस बीच आम आदमी पार्टी ने जोरदार तरीके से पांव प्रदेश में  जमाए और व्यापमं घोटाले को ले कर असरदार धरनेप्रदर्शन किए, नतीजतन, शिवराज सिंह चौहान को अरविंद केजरीवाल की शैली मजबूरी में अपनानी पड़ी क्योंकि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं. आप के विरोध ने दबाव की शक्ल ली तो और मजबूर हो गए मुख्यमंत्री को आखिरकार 15 जनवरी को कहना ही पड़ा कि व्यापमं घोटाला एक कलंक है, किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा. पर घोटाले की सीबीआई जांच पर वे चुप्पी साध गए.
क्या ईमानदारी से होगी जांच
बात आईगई हो गई लेकिन शिवराज सिंह की इस स्वीकारोक्ति से संदेश यह गया कि उन्होंने इस घोटाले की नैतिक जिम्मेदारी अपने सिर ले कर कार्यवाही करने की ठान ली है जिस से लोगों का गुस्सा शांत हो. ईमानदारी से जांच चली तो लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी तय है क्योंकि 2 अहम आरोपियों ने अपनी डायरियों में उन का उल्लेख किया है.
इस बीच यह उजागर हो चुका था कि एक पीएमटी में ही धांधली नहीं, बल्कि कोई दर्जनभर परीक्षाओं में घूस ले कर अपात्रों को सरकारी नौकरियां दी गई हैं.
इधर, धड़ाधड़ गलत तरीके से दाखिल हुए व पढ़़ रहे एमबीबीएस छात्रों के न केवल प्रवेश रद्द होने लगे बल्कि उन्हें आरोपी मान कर गिरफ्तार किया जाना शुरू किया गया तो सूबे में हड़कंप मच गया क्योंकि ऐसा पहली बार हो रहा था कि बड़े पैमाने पर घूसदाताओं के खिलाफ कार्यवाही की जा रही थी.
इस से साबित यह भी हो गया कि व्यापमं, शिक्षा माफिया के लिए बगैर चारा खाए दूध देने वाली गाय हो गया है जहां सिवा फर्जीवाड़े के कुछ नहीं होता. खुद शर्मिंदगी के साथ शिवराज सिंह चौहान ने यह भी स्वीकारा था कि कोई 1 हजार छात्रों को गलत तरीके से एमबीबीएस में प्रवेश दिया गया था. लेकिन हकीकत में इन छात्रों की तादाद कहीं ज्यादा है.

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