मैं अपने परिवार के साथ ऊटी घूमने गई थी. एक तो वह शहर हमारे लिए अनजाना था, ऊपर से वहां की भाषा हमें समझ में नहीं आती थी. ऊटी घूमने के लिए कार का इंतजाम हो गया था.  अब हम लोग यह चाहते थे कि किसी तरह एक ऐसे ड्राइवर का इंतजाम हो जाए जिसे हिंदी बोलनी आती हो. पर ऐसा हो नहीं पाया.  बड़ी मुश्किल से एक दक्षिण भारतीय ड्राइवर का इंतजाम ही हो पाया. उस का नाम नल्लूस्वामी था. वह सिर्फ तमिल भाषा ही समझता था. हालांकि वह थोड़ीबहुत टूटीफूटी अंगरेजी भी बोल लेता था. हम सभी यह सोच कर परेशान थे कि पता नहीं इस ड्राइवर के साथ हमारा सफर कैसा बीतेगा परंतु उस के साथ जो सफर हम ने किया वह हमें आज तक याद है. नल्लूस्वामी स्वभाव से बहुत ही बातूनी था. रास्तेभर वह हमें बड़े उत्साह से सारे पर्यटन स्थल दिखाता रहा और उन स्थलों से संबंधित खास व रोचक बातें भी बताता रहा.  हमें उस की भाषा अब थोड़ीथोड़ी समझ में आने लगी थी. वैसे तो हम ने उसे सिर्फ ऊटी दिखाने के लिए कहा था पर उस की जिद के चलते हमें ऊटी के पास की एक खूबसूरत जगह कुन्नूर घूमने के बाद ऐसा लगा कि कुन्नूर के बगैर ऊटी का सफर अधूरा ही है. रास्ते में बारिश भी होने लगी. नल्लूस्वामी ने झट से अपनी कमीज उतारी और मेरे छोटे भाई के सिर को ढक दिया ताकि वह बारिश में भीग न जाए. जब हम सभी खाना खाने के लिए होटल गए तो नल्लूस्वामी ने स्वयं आगे बढ़ कर वेटर को हमारे लिए वहां का प्रसिद्ध भोजन ‘रसमसादम’ लाने को कहा. हम सभी को ‘रसमसादम’ का स्वाद बहुत पसंद आया. पूरे रास्ते नल्लूस्वामी हमें आसपास के इलाकों के बारे में दिलचस्प बातें बताता रहा. उस ने हमें स्थानीय चीजें भी दिखाईं और हमें काफी सस्ते में खरीदवा भी दीं. अब हमारे वापस जाने का समय आ गया था. हम सभी रेलवेस्टेशन पहुंच चुके थे. ट्रेन छूटने से थोड़ी देर पहले तक नल्लूस्वामी हमारी ट्रेन की खिड़की के पास खड़ा रहा.  वह ज्यादा देर तक अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाया और ट्रेन की खिड़की पर अपना सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगा. उसे रोता देख कर हम सभी की आंखों में भी आंसू आ गए. उस के अपनेपन और नेकनीयत ने हमारा दिल छू लिया था. आज इस बात को 14 साल बीत चुके हैं पर आज भी जब हम कहीं घूमने जाते हैं तो नल्लूस्वामी को बहुत याद करते हैं.

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