मेरे बड़े भाई टाटा ग्रुप की कंपनी में उच्च पद पर थे. वे हर साल सावन के महीने में कांवर ले कर झारखंड के देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम जाते थे जिसे बाबा धाम भी कहते हैं. वे पिछले 27 सालों से कांवर ले कर जाते रहे थे. सुल्तानगंज में गंगा में स्नान कर कांवरिये अपने लोटों में वहां से गंगाजल भर कर लगभग 120 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा धाम के ज्योतिर्लिंग पर गंगाजल चढ़ाते हैं. इस लोटे को सभी अपने कांवर पर ही रखते हैं, पूरी यात्रा में इसे धरती पर नहीं रखा जाता. आमतौर पर 3 या 4 दिन तक लग जाते हैं.

मेरे भैया उस वर्ष 28वीं बार कांवर ले कर जा रहे थे. उन्हें पेट और सीने में हलका दर्द था. हम लोगों ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की और न जाने की सलाह दी थी. पर वे नहीं माने और कहा कि भोले बाबा सब ठीक रखेंगे, यह दर्द गैस के चलते है, दवा ले लेता हूं.

उन के साथ उन का एक मित्र भी जाता था. भैया ने सुल्तानगंज से गंगाजल ले कर अपनी यात्रा शुरू की और आधी से ज्यादा दूरी भी तय कर ली थी. फिर रात में विश्राम करने के लिए अपने मित्र के साथ एक स्थान पर रुक गए थे. वे रात में कुछ आराम कर फिर सुबह होने के पहले ही 3-4 बजे आगे चलते थे. उस रात कुछ अल्पाहार ले कर सोए तो फिर उठ न सके थे. उन के मित्र ने जब उन्हें नींद से जगाना चाहा तो शरीर बिलकुल ठंडा पाया. बाद में डाक्टरी परीक्षण और पोस्मार्टम हुआ. मौत की वजह मैसिव हार्ट अटैक बताया गया.

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