उत्तर प्रदेश में शीला दीक्षित को सीएम प्रोजैक्ट करने का कांग्रेसी मंतव्य अगर कोई है तो वह इतना भर है कि वह बसपा से गठबंधन कर सकती है. उस की मंशा ब्राह्मण और दलित वोटों को साधना है जिन का जी भाजपा से उचट रहा है. न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि देशभर के ब्राह्मण भाजपा से त्रस्त हो चुके हैं लेकिन वे विकल्पहीनता से गुजर रहे हैं. यही हालत दलितों की है जो भाजपाई झुनझुने से खुश तो हैं पर आश्वस्त नहीं. सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि कांग्रेसी दुर्दशा का ठीकरा उन के या राहुल, प्रियंका के सिर फोड़ा जाए, लिहाजा उन्होंने एक ऐसा चेहरा आगे कर दिया जिस की वफादारी में उन्हें शक नहीं है.

गेंद अब मायावती के पाले में है कि वे कांग्रेस से तालमेल पसंद करेंगी या नहीं. बसपा तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर हालफिलहाल गिनी जा रही हैं. दोनों मिल कर पहले या दूसरे नंबर का सपना देखें, तो यह उन का लोकतांत्रिक हक है.

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