यह वाकेआ उस समय का है जब मेरा छोटा पुत्र, आईआईटी खड़गपुर के द्वितीय वर्ष में अध्ययनरत था. वह अपनी छुट्टियां बिता कर वापस खड़गपुर के लिए निकला. उस समय गुर्जर आंदोलन का राजस्थान में जोर था तथा सारे मार्गों को उन्होंने रोक रखा था. दिल्ली हो कर खड़गपुर जाना तय हुआ. दिल्ली से सुबह 7 बजे की गाड़ी थी. सो, हम ने रात 10 बजे की बस से उस के लिए रिजर्वेशन करा लिया. जयपुर से दिल्ली का रास्ता 5 घंटे का है. मुश्किल का दौर यहीं से शुरू हो गया जब रेलमार्ग अवरोध होने की वजह से बसें देरी से चल रही थीं.

10 बजे की बस रात 12 बजे आई तथा बेटे की सीट पर पहले से कोई बैठा था और उस के पास भी उसी नंबर का टिकट था. उसे तो वैसे ही देर हो रही थी, सो, जैसेतैसे कंडक्टर की सीट पर बैठा और बस रवाना हुई. आधे रास्ते पर पता चला कि गुर्जरों ने आगे रास्ता जाम कर रखा है. वहां 3 बसें पहले से खड़ी थीं. सभी बस ड्राइवरों ने निर्णय लिया कि दूसरे रास्ते से बस निकाल ले जाएंगे. जैसेतैसे बस सुबह 6 बजे दिल्ली पहुंची. आटो पकड़ कर वह स्टेशन पहुंचा तो पता चला कोहरे की वजह से गाड़ी 8 घंटे लेट है. कोई चारा न देख कर वह अपनी बूआ के घर चला गया तथा दोबारा पता करने पर बताया गया कि गाड़ी 14 घंटे लेट है. आखिरकार, रात 9 बजे गाड़ी दिल्ली से रवाना हुई मगर मुसीबत का दौर अभी खत्म नहीं हुआ था. आगे गाड़ी 2 घंटे और लेट हो गई और करीब 8 बजे टाटानगर पहुंची.

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