सोशल मीडिया पर पीड़ित पति अकसर एक चुटकुला डाल देते हैं जिस में एक पत्नी शोखी से मांग भरते पति से एक फिल्मी डायलौग बोल रही है कि चुटकीभर सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो, रमेश बाबू....इस पर पति एक कागज पर घर के किराने का सामान,  बच्चों की फीस जैसे दर्जनभर मदों को जोड़ कर पत्नी को बताता है कि देख, तेरे इस चुटकीभर सिंदूर की कीमत 60 हजार रुपए महीना पड़ती है.

इस चुटकुले का वित्त मंत्री अरुण जेटली के उस वक्तव्य से गहरा और अंतरंग संबंध है जिस में उन्होंने जनता से कहा है कि विकास चाहिए तो उस की कीमत तो चुकानी पड़ेगी. अब आम आदमी पीडि़त पति की तरह हिसाब लगा रहा है कि फ्लौप नोटबंदी, पैट्रोल के बढ़े दामों, करों की मार, महंगाई, रेल हादसे से मौतों और किसानों की खुदकुशी सहित दर्जनों मदों की कीमत वही तो चुका रहा है. लेकिन वह पूछ नहीं पा रहा है कि चुटकीभर विकास की और कितनी कीमत वसूलोगे, अरुण बाबू.

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