लेखिक- सुधा सक्सेना
मेरे पापा की हम 3 बेटियां और हमारा एक भाई है. मेरे भैया और बड़ी बहन की शादी होने के बाद मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई. मुझ से बड़ी बहन की भी शादी हो गई तो घर में मैं और पापा ही रह गए. बहन की शादी के बाद मैं अपने पापा का पूरा ध्यान रखती और अपनी पढ़ाई भी करती थी. लेकिन पापा और भैया के बीच अकसर झगड़ा होता था. जिस के कारण पापा बीमार रहने लगे. उसी बीच पापा ने मेरी भी शादी कर दी. फिर वे अकेले पड़ गए. मेरी शादी के डेढ़ साल बाद वे बहुत ज्यादा बीमार हो गए. डाक्टर ने जवाब दे दिया. मैं अपनी ससुराल से पीहर पहुंच गई और उन की देखरेख करती रहती थी. कमजोरी के कारण वे बिस्तर से नहीं उठ सकते थे. मैं ने उन का पूरा ध्यान रखा.
अस्पताल से आने के 12 दिनों के बाद उन की मृत्यु हो गई. लेकिन, मरने से पहले मेरे सिर पर हाथ रख कर वे बोले, ‘‘तुम हमेशा खुश रहोगी, तुम ने एक बेटे का फर्ज निभाया है, जो तुम्हारे भाई को करना चाहिए था वह तुम ने किया है. सब की नजरों में बेटा ही सबकुछ होता है लेकिन आज तुम ने बेटी हो कर भी एक बेटे का फर्ज निभाया है.’’ उन की यह बात हमेशा मेरे दिमाग में रहती है.
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गुंजन सक्सेना, दादरी (उ.प्र.)
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मैं अपने पापा को कभी नहीं भूल सकती. उन की मृत्यु हुए 25 वर्ष से भी अधिक का समय हो गया है पर लगता है कि कल ही की बात है. पापा ने मेरे दादादादी से जायदाद में से अपने हिस्से का कोई भी अंश नहीं लिया. उन्होंने अपनी छोटी सी नौकरी में हम 9 भाईबहनों को पढ़ायालिखाया व शादीविवाह किया और अपनी मांबहनों व भाइयों को जिंदगीभर अपने से ज्यादा माना. उन्हें पूरा मानसम्मान दिया और उन की जरूरतों का ध्यान रखा.