बचपन से ही मैं ज्योतिष आदि में विश्वास नहीं करती थी. मेरे घर वालों का भी इन विषयों पर कोई विशेष भरोसा नहीं था. इसलिए मेरी और मेरी बहन दोनों में से किसी की भी जन्मपत्रिका आदि बनाई नहीं गई. पर कभीकभी जीवन में जब मुसीबतों का तूफान हमें आ घेरता है तब हम कमजोर पड़ जाते हैं. मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. मेरे व्यक्तिगत जीवन में किन्हीं कारणों से मुसीबतों का पहाड़ आ गिरा. जीवन के इन थपेड़ों को मेरा मन बरदाश्त न कर सका और हम शांति की खोज में एक ज्योतिषी से दूसरे ज्योतिषी के दरवाजे भटकने लगे. इन में से कइयों के दिए अंगूठी, कवच वगैरह मैं ने धारण किए.

मां ने अलगअलग ज्योतिषी से मेरी कुंडली बनवाई. पर आश्चर्यजनक रूप से दोनों कुंडलियों में संपूर्ण विपरीत बातें लिखी हुई थीं. क्या सच है क्या नहीं और भविष्य में मेरे लिए क्या लिखा है, इस उधेड़बुन में मैं उलझ कर रह गई. इस चक्कर में हमारे हजारों रुपए पानी की तरह बह गए.

उन दिनों मैं सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं दे रही थी. एक दिन मैं ने खुद ही मां की सब से पसंदीदा महिला ज्योतिषी को फोन किया और पूछा कि मेरी सरकारी नौकरी लगने की कोई संभावना है या नहीं. वे गोलमोल जवाब देने लगीं. कहने लगीं, आजकल नौकरी की जो हालत है उस पर सरकारी नौकरी, कहना बहुत मुश्किल है.

मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं ने बात बीच में छोड़ कर ही फोन पटक दिया. अपना खोया हुआ आत्मविश्वास फिर से जगाया और अपने उद्देश्य में लगी रही. बचपन से ही मैं पढ़ाईलिखाई में होनहार थी. कुछ ही महीनों में मुझे 3-3 सरकारी नौकरियां मिलीं और कर्मचारी नियुक्ति आयोग की परीक्षा में पूरे भारत में मेरा अच्छा स्थान रहा.        

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