मैं अभी अपने बेटे के पास अमेरिका आई हुई हूं. पर आज अनजाने में एक छोटी सी भूल बहुत महंगी पड़ी. मैं घर से बाहर खुली हवा में लौन में निकली. पर हमेशा की तरह दरवाजे की चाबी साथ लाना भूल गई थी और दरवाजा लौक हो चुका था. अभी सुबह के 10 ही बजे थे. मैं घर का कौर्डलैस फोन साथ में ले कर निकली थी. मैं ने बेटे को फोन लगाया तो उस ने कहा कि वह नहीं आ सकता और बहू भी नहीं आ सकती थी. उस ने एक फोन नंबर दिया जो ताला खोलने वाले मेकैनिक का था. मेकैनिक थोड़ी देर में आ गया और ताला बिना तोड़े खोल दिया. मैं ने उस से पूछा कि कितने पैसे हुए तो उस ने 150 अमेरिकन डौलर मांगे. उतना कैश तो मेरे पास नहीं था. मैं ने फिर बेटे को फोन किया. उस ने कहा टेबल के दराज में चैकबुक है, मैं उतनी रकम का चैक खुद साइन कर के दे दूं. मैं ने पूछा कि मेरे साइन से पेमैंट होगा. बेटे ने कहा कि बिलकुल होगा और मैं ने 150 डौलर का चैक मेकैनिक को दे दिया.

बेटे ने शाम को बताया कि जब तक चैक के साइन को वह चैलेंज नहीं करता, बैंक को कोई आपत्ति नहीं होगी, पर मुझे अपनी भूल पर ग्लानि हो रही थी. ताला खोलने के लिए जो रकम दी गई वह लगभग 10 हजार रुपए के बराबर थी.

शकुंतला सिन्हा, बोकारो (झारखंड)

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वरिष्ठ सहकर्मियों ने बैंक में एक स्पोर्ट्स क्लब की स्थापना की थी जो आज भी क्रियाशील है. स्पोर्ट्स के साथसाथ वे सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन भी करते थे. ऐसे ही एक कार्यक्रम को देखने के लिए मुझे भी आमंत्रित किया गया था. पत्नी के साथ मैं आयोजन स्थल पहुंचा. एक सज्जन हौल के गेट पर खड़े थे. वे आगंतुकों का पास देख कर अंदर जाने की अनुमति देते थे. मैं ने भी उन्हें अपना कार्ड दिखाया. कार्ड को गौर से देखने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘आज का प्रोग्राम भारतीय स्टेट बैंक की ओर से है. आप के कार्ड पर लिखी तिथि के अनुसार रिजर्व बैंक का कार्यक्रम अगले रविवार को है.’’ मैं झेंप गया और कार्ड वापस लेने के लिए हाथ बढ़ाया. उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप हमारा शो देखना चाहें तो अंदर जा कर बैठ सकते हैं.’’ मैं ने पत्नी की ओर देखा और उस के हामी भरने पर अंदर चला गया. कार्यक्रम बहुत शानदार और मनोरंजन से भरपूर था. आज भी वह नजारा आंखों में तैरता है और हमें अंदर जाने की अनुमति देने वाले सज्जन की याद आती है.

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