मेरे भैया मुंबई में रहते हैं. एक बार की बात है. भैया और उन के कुछ साथी मीटिंग में शिरकत करने के लिए गाड़ी से कहीं जा रहे थे. अचानक एक गाड़ी सामने से आई. शायद उस गाड़ी का ड्राइवर शराब के नशे में था. लिहाजा दोनों गाडि़यों में टक्कर हो गई.

भैया की गाड़ी में आग लग गई. उन के सब साथी तो निकल गए लेकिन मेरे भैया बेहोश हो गए और अंदर ही फंस गए. जब उन को होश आया तो अपनेआप को सुरक्षित एक अस्पताल में पाया. उन को याद ही नहीं आ रहा था कि किस सज्जन ने उन्हें जलती गाड़ी से निकाला और अस्पताल तक पहुंचाया. उन्होंने उन सज्जन को मन से लाख बार शुक्रिया अदा किया. अभी भी जब हम लोग उस की चर्चा करते हैं तो उन सज्जन के प्रति उन का मन कृतज्ञता से भर जाता है.

ओम प्रकाश, दरभंगा (बिहार)

*

पड़ोस में मनोहर लाल रहते हैं. वे प्राइमरी विद्यालय में शिक्षक हैं. उन की पत्नी मीना गृहिणी हैं. दोनों इस बात से दुखी रहते हैं कि उन की कोई संतान नहीं है. दोनों ने काफी इलाज कराया परंतु सफलता नहीं मिली. एक दिन जाड़े की सुबह एक औरत अपनी एक वर्ष की बेटी के साथ भीख मांगती हुई उन के घर आई. भीख के लिए वह अपनी बेटी को आगे कर के कह रही थी कि इस ने 2 दिनों से कुछ नहीं खाया है. इस का पिता हम लोगों को छोड़ कर भाग गया है.

मनोहर लाल की पत्नी को उस औरत पर दया आ रही थी. उस के दिमाग में एक विचार आया कि काश, यह बेटी मेरे पास होती. उस ने इस संदर्भ में अपने पति से बात की. मनोहर को भी पत्नी की बातों में दम लगा. वे उस औरत से बोले, ‘‘मुझे यह लड़की गोद दे दो, मैं इसे पढ़ाऊंगा, लिखाऊंगा, अच्छे घर में शादी करूंगा. तुम्हें इस बारे में कुछ सोचना न होगा. इस लड़की को हमें देने के बाद तुम कमाखा सकती हो. जब मन में आए लड़की से मिल जाया करना.’’ वह औरत सबकुछ सुनती रही और बोली, ‘‘बाबूजी, सोच कर बताऊंगी.’’

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