बचपन में मैं अपने दादादादी के साथ गांव में थी. कार्तिक मास में सवेरे नदी पर स्नान करने की प्रथा है, इसीलिए मेरी दादी और अन्य पड़ोसी महिलाएं, लड़कियां स्नान के लिए चल दीं. दादी ने मुझे किनारे बैठा कर वहीं नहाने के लिए कहा और खुद थोड़े गहरे पानी में चली गईं.

औरतें गपशप करतेकरते नहा रही थीं. मौका देख कर मैं भी गहरे पानी में उतर गई. तभी अचानक पानी का एक जोरदार बहाव आया और मैं पानी के साथ बहती चली गई. मुझे तैरना नहीं आता था. तभी एक 15-16 साल के लड़के ने मुझे लपक कर पकड़ा और किनारे पर ले आया. बड़ों को इस की खबर भी नहीं हुई. स्नान होने के पश्चात दादी और अन्य महिलाएं घर जाने को तैयार हुई ही थीं कि 4-5 लड़के वहां आ गए और बोलने लगे, ‘‘यही लड़की है, यही लड़की है.’’

सब की नजरें मेरी ओर गईं. मैं सहमी सी जमीन में नजरें गड़ाए खड़ी थी. सरला चाची के पूछने पर लड़कों ने सारी बात बता दी. मेरी दादी तो सुनते ही सुधबुध खो बैठीं और मुझे पकड़ कर रोने लगीं. बाद में पता चला कि कुछ लड़के पुल की दूसरी तरफ तैर रहे थे. उन में से एक लड़का तैरता हुआ इस तरफ चला आया. अचानक मैं उसे डूबती नजर आई और उस ने मुझे बचा लिया. जब भी यह घटना याद आती है, मन उस अनजान, लड़के के प्रति आदर से भर आता है.

निधि अग्रवाल, फिरोजाबाद (उ.प्र.)

*

मेरी सगाई के लिए दादाजी बैंक लौकर से जेवर ले कर घर आए. मेहमानों की व्यस्तता और समय की कमी के चलते मम्मी ने सारे जेवर रात में देखे तो उस में कुंदन के गहनों का डब्बा नहीं था. वही हार मुझे पहनना था. शुक्रवार का दिन था. शनिवार व रविवार बैंक बंद था. अब हम सब को टैंशन हो रही थी क्योंकि दादाजी कह रहे थे कि बैंक लौकर में अब केवल 2 डब्बे बचे हैं. इस का मतलब डब्बा लौकर में नहीं है. तो क्या वह रास्ते में गिरा या बैंक में लौकर के बाहर छूट गया? रविवार को सगाई संपन्न हुई. सभी मेहमान सोमवार की सुबह रवाना हो गए.

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