हमारे पड़ोस में एक पंडित और पंडिताइन रहते थे. उन के लड़के के जन्म के समय मेरी मां उन के साथ अस्पताल गईं व सारी रात वहीं रुकीं भी. उन्होंने कई बार उन की मदद की. जब एक बार मेरी मां को माइग्रेन से सिरदर्द हो रहा था तो पंडितजी ने फोन कर डाक्टर बुलवा लिया. हम में अच्छी दोस्ती रही परंतु कुछ वर्षों बाद किसी बात पर दोनों परिवारों में लड़ाई हो गई और जब मेरे भाई ने उन को मेरी मां की मदद की बात याद दिलाई तो उन्होंने तपाक से कहा, ‘‘हम ने भी एक बार डाक्टर बुला कर एहसान का बदला चुका दिया.’’ ऐसी बात सुन कर हम अवाक् रह गए.

सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

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हमारे पड़ोस में एक लड़की बड़ी ही पढ़ाकू सी दिखती थी. जब भी देखो, किताब ले कर पढ़ती ही दिखाई देती. लेकिन इंटरमीडिएट की परीक्षा में उस के नंबर बहुत अच्छे नहीं आए. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना पढ़नेलिखने वाली लड़की के इतने कम नंबर कैसे आए. किसी तरह उस ने बीए किया तथा साथ में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करती रहती. मां कहतीं, ‘‘देखिए बहनजी, मेरी बेटी दिनभर पढ़ती रहती है परंतु अध्यापक लोग इस को नंबर ही नहीं देते. मैं तो इस से घर का काम भी नहीं कराती हूं.’’ मैं भी सोचती, कहीं तो कुछ बात अवश्य है. एक दिन वह अपनी सहेली से बाहर लौन में फोन पर बात कर रही थी. मैं भी बाहर बैठी थी परंतु उस ने मुझे नहीं देखा था. वह फोन पर कह रही थी, मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता है पर यदि मैं ऐसा अपनी मां व पापाजी से कहूंगी तो मां मुझ से घर का काम करने को कहेंगी. सो, मैं काम करने के डर से हर समय किताब खोल कर बैठी रहती हूं.

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