एनडीए में प्रवेश पाने के लिए इंटरमीडिएट, फिर यूपीएससी की लिखित परीक्षा, अंत में एसएसबी का विशिष्ट इंटरव्यू क्लियर करने के बाद 19 वर्ष का मेरा बेटा अमित, पुणे के खडगवासला में ट्रेनिंग हेतु ‘माईक’ स्क्वैड्रन में पहुंचा. 6 महीने के अंतराल पर 1-2 दिनों के लिए मांबाप उन से कैंपस में ही मिल सकते थे और 1 वर्ष के अंतराल पर उन्हें घर जाने को मिलता था. बच्चे 1-1 दिन गिनते थे. 6 महीने के बाद हम बेटे से मिलने पहुंचे. सारे लड़कों का एकजैसा फीचर, ड्रैस, हेयरकट, दुबलेपतले परंतु स्मार्ट. ऐसे में अपने बच्चे को पहचानना अत्यंत कठिन हो रहा था. जूस सैंटर और आईसक्रीम पार्लर वाले उस छोटे पार्क में हमारी नजरें अपने अमित को ढूंढ़ रही थीं.

अमित मेरे पास आ कर बोला, ‘‘मम्मी.’’

मेरा तो उस दुबलेपतले अमित को देख कर कलेजा मुंह को आ गया. मैं ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘अरे मेरे बेटे, तू कितना पतला हो गया है. खाना नहीं मिलता क्या?’’

‘‘खाना तो बहुत अच्छा मिलता है पर खाने का समय बहुत कम होता है,’’ वह बोला. पर हमें देख कर उस की खुशी उस के चेहरे से साफ टपक रही थी.

उसी समय मेरी नजर पास खड़े एक रोंआसे से उदास लड़के पर पड़ी. मैं ने अमित से उस के बारे में पूछा. अमित ने बताया कि वह सुबह से ऐसे ही अपने मम्मीपापा का इंतजार कर रहा है.

मैं उस के पास जा कर उस के कंधे पर हाथ रख कर बोली, ‘‘बेटा, मैं अमित की मां हूं, चल मेरे साथ.’’

बैंच पर उसे बैठा अपनी बाहों में भर लिया. फिर बोली, ‘‘बेटे, उदास नहीं होते, किसी अत्यावश्यक कार्य के कारण तुम्हारे मम्मीपापा नहीं आ पाए होंगे.’’

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