मैं अपने 6 वर्षीय बेटे को हिंदी का एक पाठ ‘जीवित कौन है’ पढ़ा रही थी. उस में कुछ इस तरह लिखा था कि मरते सब हैं. जो पैदा हुआ है उसे मरना भी होगा पर मरनेमरने में फर्क भी होता है. जब महात्मा गांधी मरे तो सारी दुनिया रो पड़ी क्योंकि जो सच्चे और दयालु आदमी होते हैं वे दूसरों के लिए भी जीते हैं. दूसरों के लिए जीना ही सच्चा जीना है और दूसरों के लिए मरना ही सच्चा मरना है.

पूरा पाठ पढ़ने के बाद मेरे बेटे ने तपाक से कहा, ‘‘मम्मी, मैं भी दूसरों के लिए जीऊंगा.’’ भले ही उसे इन सब बातों की समझ न हो, लेकिन फिर भी मुझे उस के कहे शब्द सुन कर उस की बालसुलभ सोच पर गर्व महसूस हुआ.       

सुनीता डबास

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हमारे बड़े भाई की 2 लड़कियां हैं. बड़ी लड़की की शादी गाजियाबाद में जा कर की. जिस समय बड़े भाई की लड़की की शादी थी, उसी समय चाचाजी के सब से छोटे लड़के की पत्नी की, औपरेशन द्वारा, लड़की पैदा हुई, जिस के कारण उन का परिवार गाजियाबाद नहीं जा सका.

हम लोग जब शादी से लौटे तो चाचा के बड़े लड़के का 7 वर्षीय पुत्र, जिस का नाम सोभित है, से कहा कि तुम शादी में नहीं गए. वहां खूब मिठाइयां व आइस्क्रीम थीं. खैर, कोई बात नहीं, अगले साल शादी में चलना. बात सुन कर उस ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि अगले साल फिर बच्चा पैदा हुआ तो? यह बात सुन सभी लोग हंसने लगे.

राजेंद्र कुमार

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मैं अपने भतीजे के यहां एक विवाह में गई थी. जब गांव के लोग भोज के लिए आने लगे तो मेरा 4 वर्षीय पुत्र दौड़ कर एक पत्तल ले कर बैठ गया. जब खाना परोसना शुरू हुआ तो वह हर चीज को पहले अपने पत्तल पर डालने के लिए आवाज लगाता. वह इस तरह का भोज पहली बार देख रहा था. उस की हर हरकत पर गौर कर रहे मेरे भैया ने पूछा, ‘‘क्यों आदर्श, बहुत जोर की भूख लगी है क्या?’’ वह बोला, ‘‘नहीं मामाजी, भूख तो ज्यादा नहीं लगी है, लेकिन इतने सारे लोग खाना खाने आए हैं, अगर खाना खत्म हो गया तो मैं क्या खाऊंगा?’’

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