आम आदमी पार्टी यानी आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल को पंजाब और गोआ के नतीजे देख फिर से एक अदद गुरु की सख्त जरूरत महसूस हो रही होगी. उन्हें दिल्ली की गद्दी कभी अन्ना हजारे के आंदोलन के चलते मिली थी. अब अन्ना आएदिन नरेंद्र मोदी की तारीफ करने लगे हैं यानी गलत नहीं कहा जाता कि काबिल गुरु को भी काबिल चेले की जरूरत होती है.

हालांकि अरविंद केजरीवाल की गांठ से कुछ नहीं गया है पर पंजाब और गोआ को ले कर आप के बारे में जो हल्ला मचा था वह टूटी उम्मीद भी किसी घाटे से कम नहीं कही जा सकती. आप न तो राष्ट्रीय पार्टी बन पाई, न ही केजरीवाल राष्ट्रीय नेता बन पाए, जो आगे चल कर कभी प्रधानमंत्री बनने का रास्ता प्रशस्त करता. ऐसे में गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों पर निगाहें गड़ाए बैठे केजरीवाल को दिल्ली पर ध्यान देते गंभीरता से सोचना चाहिए कि उन के पास जमीनी नेता और संगठन की कमी है जिस के चलते पंजाब व गोआ दोनों हाथ से फिसल गए.

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