मैं अपनी साथी शिक्षिकाओं के साथ स्टाफरूम में बैठी थी. चपरासी को 50 रुपए का नोट दे कर 4 चाय लाने को कहा. थोड़ी देर के बाद वह 5 चाय ले कर आया. मेरे पूछने पर कि मैं ने तो उसे 4 चाय लाने को कहा था, उस ने कहा, ‘‘मैडम, एक चाय मैं अपने लिए लाया हूं.’’ इस पर मैं ने कहा, ‘‘हम ने तो तुम्हें भी गिन कर 4 चाय मंगाई थीं.’’ तब उस ने ‘सौरी’ कहा. बात आईगई हो गई. कुछ दिनों के बाद मैं ने उसे 100 रुपए का नोट दे कर 5 कोल्ड डिंरक्स लाने को कहा और उसे बताया कि तुम्हें भी गिन लिया है. कुछ देर के बाद वह 4 कोल्डडिंरक्स ले कर आया. इस पर मुझे आश्चर्य हुआ. मैं ने फिर उस से पूछा, ‘‘क्यों भाई, ये 5 के बदले 4 कैसे हो गईं?’’ तब उस का जवाब था, ‘‘क्या है न कि मैडम, यहां तक आतेआते कोल्ड डिंरक गरम हो जाती, इसलिए मैं अपनी कोल्ड डिंरक वहीं पी कर आया हूं.’’ उस के इस जवाब पर हम सभी हंस पड़ीं.

ईशू मूलचंदानी, नागपुर (महा.)

*

मेरी छोटी भाभी के भाई की शादी थी जिस में शामिल होने के लिए मैं जबलपुर गई. दूसरे शहर से मेरे बड़े भाई भी आए थे. खूब बाजेगाजे के साथ बरात निकली. हमारे एक पुराने रिश्तेदार भी रास्ते में ही बरात में शरीक हुए. हमारे नमस्ते करने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए बोले, ‘‘आप लोग कब आए?’’ मैं ने कहा, ‘‘कल आई और भैया आज सुबह आए हैं.’’

शोरगुल के कारण शायद वे मेरी बात पूरी तरह सुन नहीं पाए इसलिए थोड़े आश्चर्य से बोले, ‘‘आप लोग अलगअलग आए हैं?’’ भैया ने उन्हें समझाया, ‘‘मैं मुंबई से आया हूं और यह इलाहाबाद से आई है. साथसाथ कैसे आते?’’ अब वे मेरी ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘भाभीजी, इलाहाबाद किसी काम से गई थीं?’’

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