कालोनी में 2 महिलाएं हाथ में कंबल लिए आवाज लगा रही थीं. साड़ी दे दो, कंबल ले लो. वे घरघर जा कर महिलाओं को 3 पुरानी साडि़यों पर एक कंबल बना कर देंगे, ऐसा समझा रही थीं.

चूंकि अपनी ही साडि़यों का कंबल बन रहा था, इसलिए महिलाओं ने पुरानी, फटी साडि़यों के बजाय अच्छीअच्छी साडि़यां उन महिलाओं को दीं. उन का मेहनताना 150 रुपए था जो उन लोगों ने कंबल ला कर देने पर लेने के लिए कहा था.

वे एक गाड़ी ले कर आई थीं, उन के साथ 2-3 पुरुष थे जो महिलाओं से साड़ी इकट्ठी कर के उस गाड़ी में रख रहे थे. देखते ही देखते करीब 500 साडि़यां जमा हो गईं. उन्होंने तीसरे दिन आने का वादा किया.

हम महिलाओं ने उन लोगों का मोबाइल नंबर व पता लिया, जहां वे लोग कंबल बनाने का काम कर रहे थे. हम लोग निश्चिंत हो गए. 3 दिन बीत गए वे लोग नहीं लौटे. उन का मोबाइल भी स्विच औफ आ रहा था.

कुछ लोग उन के बताए पते पर गए तो हैरान रह गए. वहां ऐसा कुछ भी नहीं था. इस प्रकार हम लोग दिनदहाड़े ठगी के शिकार हो गए.

रूपल राठौर

*

मैं खरीदारी करने के लिए मौल में गई. वहां कुछ कपड़े पसंद करने के बाद, मैं ट्रायलरूम की तरफ गई. वहां एक लड़की, जिस की उम्र 16-17 साल रही होगी, मुझ से मीठी बातें करने लगी. जब मैं ट्रायलरूम में जाने लगी तो वह लड़की कहने लगी, ‘‘दीदी, अपना भारी बैग बाहर रख दो, मै ध्यान रख लूंगी.’’ मुझे वह लड़की शरीफ लगी, इसलिए ज्यादा न सोच कर उस की देखरेख में बैग बाहर ही रख दिया.

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