प्राध्यापिका पद के साक्षात्कार हेतु अपनी पत्नी के साथ मैं वरुणा ऐक्सप्रैस से लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. गाड़ी छूटने में थोड़ा समय था. हम लोगों को छोड़ने के लिए आए एयरफोर्स में जेसीओ मेरे साढ़ू से मैं कोच के बाहर बात कर रहा था. भीतर उन की पत्नी मेरी पत्नी के साथ बात कर रही थीं. हमारा ब्रीफकेस पत्नी के पास बर्थ से टिका कर रखा था. सामने की बर्थ पर एक अन्य यात्री बैठा था. गाड़ी छूटने के 5 मिनट पहले मैं भीतर गया तो देखा ब्रीफकेस गायब था. और सामने बैठा वह आदमी भी नहीं था. मैं समझ गया कि यह किस का काम है. ब्रीफकेस में अहम दस्तावेज व प्रमाणपत्र थे. हम ने एकएक कोच को अंदर से देखना शुरू किया. संयोगवश वह आदमी 5वीं कोच में बैठा मिल गया. हम दोनों उस के पास जा कर बैठ गए और पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

वह बोला, ‘‘वाराणसी.’’

‘‘यह ब्रीफकेस तुम्हारा है?’’ साढ़ू ने पूछा.

‘‘हां, क्यों आप को कोई शक?’’ वह बोला.

साढ़ू ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ा और पूछा, ‘‘इस में क्याक्या रखा है? इस की चाबी से इसे खोलो.’’ उस आदमी की घबराहट देखने लायक थी. वह उठ कर ब्रीफकेस छोड़ कर जाने लगा. इतने में गाड़ी ने सीटी दे दी. साढ़ू ने फिर एक झन्नाटेदार चाटा जड़ते हुए कहा, ‘‘समय नहीं है, वरना इस उठाईगीरी की सजा तुम्हें जेल में ही दिलवाते.’’

आशीष कुमार, लखनऊ (उ.प्र.)

*

मैं घर से पत्रकारपुरम चौराहा जा रहा था. अचानक लाल रंग की एक नई कार मेरे पास आ कर रुक गई. उस में बैठा युवक बोला, ‘‘अंकल, मुझे आप से मदद चाहिए. मेरी आंटी अस्पताल में भरती हैं. मुझे उन की दवा लेनी है. मेरा पर्स गिर गया. क्या आप मुझे 300-400 रुपए दे सकते हैं. आप के रुपए शाम तक वापस कर दूंगा.’’ मैं ने कहा, ‘‘भाई, मेरे पास इस समय इतने रुपए नहीं हैं. हां, मेरा घर पास में है. चलो, घर से रुपए दे कर तुम्हारी मदद जरूर करूंगा. बस, कार मेरे घर पर खड़ी कर दो और चाबी दे दो. शाम को जब पैसे लौटाने मेरे पास आओगे तब अपनी कार वापस ले जाना.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...