बसपा प्रमुख मायावती ने अपने मिजाज और जरूरत के मुताबिक चुनावी तेवर इख्तियार कर लिए हैं. हालांकि एक अकेली महिला को एकसाथ कई मोरचों पर जूझना पड़ रहा है. पर बसपा का बुरा वक्त भी है क्योंकि एकएक कर नेता खासतौर से सवर्ण पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं. मायावती जानती है कि उन का मुकाबला सपा से है, इसलिए भाजपा से ज्यादा उसे घेर कर ही सत्ता हासिल की जा सकती है. एक ताजे बयान में मायावती का यह कहना वाकई दिलचस्प और अहम था कि अखिलेश को उन्हें बूआ कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं क्योंकि 2 जून, 1995 को उन के पिता मुलायम सिंह ने उन पर जो हमला करवाया था उसे लोग भूले नहीं है और सपा महिलाओं की हिफाजत नहीं कर पा रही. अब उन्हें कौन याद दिलाए कि एक वक्त में सियासी रिश्तेनातों के जाल में आ कर वे खुद भी तो फंसी थीं.

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