राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते खर्चों का हिसाब मांगने वालों का मुंह बंद करने के लिए अब उसे मिलने वाले चंदे की गिनती का काम शुरू हो गया है. शुरुआती दौर में लोगों को इतना पता चला कि संघ को वर्ष 1928 में महज 84 रुपए मिले थे और नागपुर स्थित उस का मुख्यालय भी एक व्यापारी के दान के 6 हजार रुपए से वर्ष 1937 में बना था.

संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक एम जी वैद्य की बातों से यह तो साफ जाहिर हुआ कि चंदे की वित्तीय वर्ष 2016-17 की राशि करोड़ों में है. लेकिन वे कहते हैं कि यह चंदा नहीं, बल्कि दक्षिणा है.

गौरतलब है कि आरएसएस हर साल गुरुपूर्णिमा से ले कर रक्षाबंधन तक यह चंदा, दान या गुरुदक्षिणा जो भी है, लेता है. अब तो हर कोई संघ को यह दक्षिणा देना चाहता है जिस से उस की बिगड़ी सुधरे और हिंदुत्व का मिशन परवान चढ़ता रहे. इस चंदे में देखने लायक इकलौती बात यह होगी कि इस की राशि ब्रैंडेड मंदिरों के चढ़ावे से कम निकलती है कि ज्यादा.

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