रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को ले कर भाजपा खुद तो दोफाड़ है ही, आरएसएस के कुछ पदाधिकारियों को भी लगता है कि राजन का दर्शन उस के आनुषंगिक संगठन स्वदेशी जागरण मंच से मेल खाता हुआ है. राजन को दूसरा मौका दिया जाएगा या नहीं, यह बात इसलिए भी मौजूं है कि संघ के ही एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा था कि इस मुद्दे पर संघ और भाजपा के भीतर चर्चा होनी चाहिए, सार्वजनिक रूप से बयानबाजी नहीं की जानी चाहिए. दूसरी तरफ वित्त मंत्री अरुण जेटली और सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नेता भी हैं जिन्हें राजन फूटी आंख भी नहीं सुहाते क्योंकि वे भारतीय अर्थव्यवस्था का सरलीकरण आम आदमी की भाषा में यह कहते कर देते हैं कि हम तो अंधों में काने राजा हैं. कहावतों और मुहावरों से परे राजन की सेहत पर इस बात या विवाद से कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है जो द्वंद में बदलता जा रहा है.

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