पुरानी कहावत है कि दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते क्योंकि वह दूध मुंह से नहीं, थनों से देती है. दान की महिमा अपरंपार है. लोग तरहतरह से दान देते हैं. और पंडेपुजारी उस से भी ज्यादा तरीकों से दान लेते हैं. दान एक लाइलाज बीमारी सा भी है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने सरकारी खजाने से 5 करोड़ रुपए का सोना तिरुपति के मंदिर में दान में दिया और इस पर भी जी नहीं भरा, तो भगवान को सोने की मूंछें भी दान कर डालीं. मूंछदान का यह पहला मामला था, इसलिए बवाल मचा. लेकिन इस का विरोध करने वाले भी गच्चा खा गए. विरोधियों ने जनता के पैसे को निजी मन्नतों के एवज में दान देने पर एतराज जताया. बात में दम तब आता जब वे यह कहते कि जो सब को देता है उसे देने की क्या जरूरत और वह भी मूंछें. विष्णु के कई रूप और अवतार क्लीनशेव भी हैं, इन में से एक वेंकटेश है.

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