अब विपक्ष एकजुट हो कर 2019 नहीं, बल्कि 2024 के बारे में सोचे, यह दार्शनिकों जैसा विश्लेषण जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का है जो घाटी में भाजपा और पीडीपी के बेमेल गठबंधन को अभी तक कामयाबी से चलते देख हैरान हैं. उमर को एहसास है कि इस युति ने अपनी मियाद पूरी कर ली तो उन्हें जरूर जल्द दिल्ली आ कर होटलिंग के अपने पुराने कारोबार में दिलचस्पी लेनी पड़ सकती है.

इस अप्रिय स्थिति से बचने के लिए जरूरी है कि उन का व कांग्रेस का गठबंधन कश्मीर और अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव जीते. कश्मीर जीतने के लिए तो उन्होंने अपने पिता फारूख अब्दुल्ला को दांव पर लगा दिया है पर अनंतनाग में मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सईद ने तसद्दुक हुसैन सैय्यद को खड़ा कर उन की राह में बैरियर लगा दिया है. इन दिनों नरेंद्र मोदी के नाम पर सियासत कर रहीं महबूबा को भाजपा का साथ उस की ही शर्तों पर पसंद आने लगा है तो वहीं अखिलेश यादव का हश्र देख उमर चिंतित हैं, इसलिए हिंदू बाहुल्य जोखिमभरी सीट उन्होंने कांग्रेस को दे दी है. मुसलिम बाहुल्य सीट कश्मीर पर अब्दुल्ला परिवार की साख और फारूख का रुतबा किसी सुबूत का मुहताज नहीं. पर उमर का यह डर भी जायज है कि आजकल वोटर के मिजाज का ठिकाना नहीं कि वह कब, क्या कर दे. 

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