पौराणिक गालियां

बिहार चुनाव में नेता एकदूसरे को बड़ी दिलचस्प गालियां बक रहे हैं. लालू यादव ने अमित शाह को नरभक्षी कहा तो जवाबी हमले में नरेंद्र मोदी ने उन्हें शैतान करार दे दिया. उम्मीद है आखिरी चरण आतेआते संस्कृतनुमा इन गालियों का प्रयोग और बढ़ेगा. वैसे, गालियां धर्मग्रंथों से भी ली जा सकती हैं जैसे नीच, पतित, कामी, लंपट, दुष्ट, राक्षस वगैरहवगैरह. इन गालियों से भाषाई संपन्नता ही प्रदर्शित होती है जिन पर कानून भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाता. इंडियन पीनल कोड में गाली की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है. अदालतें भी प्रचलित गालियों को ही अपमानजनक मानती हैं. इसलिए अगले चुनावों के मद्देनजर सभी दलों को ऐसे प्रकांड विद्वानों की सेवाएं लेनी चाहिए जो पौराणिक ग्रंथों से अभिजात्य किस्म की गालियां निकाल कर दे सकें.

जर्नलिस्ट सीएम

कुछकुछ चीजें जिन्हें ज्ञान कहा जा सकता है, उम्र के साथ ही समझ आती हैं. मीडिया से मधुर संबंध इन में से एक है. यह ज्ञान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मिला तो वे बीते दिनों लखनऊ में एक अखबार के दफ्तर में बतौर अतिथि संपादक जा पहुंचे और अखबारी दुनिया को नजदीकी और बारीकी से देखा सबकुछ समझ लेने की एक्ंिटग करने के बाद अखिलेश ने एक ऐसी बात कही जो आमतौर पर बुजुर्ग करते हैं कि मुखपृष्ठ पर पे्ररक खबरें होनी चाहिए. बात सच है कि जमाना और माहौल खराब है. आम लोग डर, निराशा और अवसाद से घिरे हैं. ऐसे में यह अखबारों की जिम्मेदारी है कि वे पहले पेज पर डेल कार्नेगी, स्वेट मार्डेन और उन के देसी संस्करण शिव खेड़ा को छाप कर लोगों को नैतिकता का नशा देते रहें.

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