प्रकट हुए सिद्धरमैया

कर्नाटक में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री चुनने के लिए गुप्त मतदान का रास्ता क्यों चुना, यह पहेली शायद ही कोई सुलझा पाए. अब तक मुख्यमंत्री ऊपर से थोपे जाते रहे हैं और ऐसों को पैराशूट सीएम कहा जाता है. अरसे बाद शुद्ध लोकतांत्रिक तरीके से जमीनी मुख्यमंत्री चुना गया.

हैरत की दूसरी बात यह है कि कांग्रेस विधायक दल ने एक ऐसे दलित नेता को चुना जिस के संस्कार कांग्रेसी नहीं हैं.

7 साल पहले तक के सिद्धरमैया जनता दल (एस) के सदस्य थे. सिद्धरमैया के सामने चुनौतियों का अंबार है. उन से हारने वाले कद्दावर नेता और केंद्रीय श्रम व रोजगार मंत्री एम मल्लिकार्जुन चुप नहीं बैठे और शपथग्रहण के दिन खासा हल्ला मचवा कर ही माने, जो शायद सच्चे कांग्रेसी की पहचान है. सिद्धरमैया के सामने सब से बड़ी चुनौती बेंगलुरु  को दोबारा आईटी कैपिटल बनाने की है.

अंधविश्वास के फेर में सोनिया

पूजापाठ में सोनिया गांधी किसी भाजपाई नेता से उन्नीस नहीं हैं और इस बात का साल में दोचार बार वे नवीनीकरण करा ही लेती हैं. अजमेर की दरगाह के ख्वाजा की खिदमत में उन्होंने दिल्ली से चादर भेजी, धार्मिक भाषा में इसे पेश करना कहते हैं.

अजमेर वाले बाबा का बड़ा भभका देशभर में है. नेता, अभिनेता और उद्योगपति वगैरह उन की दरगाह में लाइन लगाए खड़े रहते हैं. उर्स के दिनों में यहां एक हाथ में कटोरा और दूसरे में मोरपंख की झाडू लिए भिखारी भी इफरात से नजर आते हैं. क्या पता किस भेष में बाबा हों यह सोच कर श्रद्धालु इन चलतेफिरते निकम्मे बाबाओं को खूब चढ़ावा देते हैं. सोनिया गांधी ने चादर पेश कर इस अंधविश्वासी मानसिकता को बढ़ावा दिया है.

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