हम लोग ट्रेन से कानपुर जा रहे थे. टिकटचैकर आया तो हमारे सामने बैठे सज्जन से उस की तकरार होने लगी. पता चला कि उन्होंने अपने टिकट पर वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली छूट ले रखी थी. लेकिन उस वक्त कोई प्रमाण नहीं था. उन्हें देख कर टिकटचैकर मानने को तैयार नहीं था कि वे वरिष्ठ नागरिक हैं. काफी देर तक उन दोनों के बीच बहस चलती रही. आखिरकार, टिकटचैकर ने अतिरिक्त राशि की रसीद काटने के लिए रसीदबुक निकाल ली. तभी माथे पर छलक आया पसीना पोंछने के लिए उन सज्जन ने अपने सिर से विग उतार दी. उन का खलवाट सिर प्रकट होते ही उन की शक्ल ही बदल गई और टिकटचैकर बगैर कुछ बोले खिसक लिया.

ओमप्रकाश बजाज, इंदौर (म.प्र.)

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मेरा एक सहकर्मी था. उसे शराब पीने की आदत थी. वह जब भी शराब पीता था तो अगले दिन औफिस आ कर पूरी बातें बताया करता था और अंत में कहता था, ‘‘शराब तो मर्द पीते हैं.’’ मैं शराब नहीं पीता था, इसलिए वह मुझे सुना कर यह बात कहा करता था. एक दिन वह अपनी शराबखोरी की घटना को बड़े गर्व से बता रहा था. मैं ने अचानक उस से पूछ लिया, ‘‘तुम्हारे पिताजी शराब पीते हैं?’’ तो उस ने तुरंत जवाब दिया, ‘‘नहीं.’’

‘‘तो इस का मतलब है कि तुम्हारे पिताजी मर्द नहीं हैं,’’ मैंने हंसते हुए कहा. मेरी बात सुन कर सारे सहकर्मी हंस पड़े. वह सहकर्मी बहुत शर्मिंदा हुआ.

लखवंत सिंह, जमशेदपुर (झारखंड)

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शादी के बाद जब मैं अपनी ससुराल पहुंची तो कुछ भी अपना सा नहीं लगा. सासूजी ने हमें और हमारा घर खर्च अलग कर दिया. सब लोग यानी ननदें, सासूजी सब काम जैसे खानापीना, कहीं जाना आदि, साथसाथ करते तो मैं स्वयं को अलग महसूस करती. रसोई एक थी पर मुझे अपने पति के लाए सामान से ही चायनाश्ता आदि बनाना होता था. हर समय यही सुनने को मिलता तुम अपना खर्च अलग से करो. जब मेरा सब्र का बांध टूट गया तब एक? दिन मैं सासूमां से बोली, ‘‘मांजी, यदि मेरी जगह आप की बेटी होती और उस के साथ भी ससुराल में मेरी तरह व्यवहार किया जाता, तब आप को कैसा लगता? बेटी और बहू में फर्क क्यों? जो आज बेटी है कल बहू होगी.’’ यह सुनते ही सासूजी को अपनी भूल का एहसास हो गया. उन्होंने उसी दिन से कोई भी प्रथा जिस से बहू या बेटी में अंतर हो खत्म कर दी.

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