मेरे पति के अभिन्न मित्र की एक बहुत बुरी आदत थी. वे बातबात में मेरे पति से कहते, ‘‘तुम राजा भोज और मैं गंगू तेली.’’ मेरे पति उन्हें बारबार समझाते, कहते, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है.’’ पर वे तुरंत कहते, ‘‘बात तो ऐसी ही है. तुम अपनी कक्षा में प्रथम आते रहे हो और मैं घिसटघिसट कर पास होता रहा. तुम बड़े संपन्न व्यक्ति के पुत्र और बड़े अधिकारी और मैं एक क्लर्क, तो मैं सही कहता हूं न.’’

जब वे किसी तरह नहीं समझे तब मेरे पति ने एक उपाय सोचा. अगली बार जब वे हमारे घर आए तो उन्हें देखते ही मेरे पति ने कहा, ‘‘आओआओ गंगू तेली.’’ इतना सुनते ही वे सकपका गए. उन्हें बहुत बुरा लगा पर जब बात उन की समझ में आई तो ठहाका लगा कर हंसे और उस के बाद उन्होंने अपनी आदत भी बदल डाली.

शशि श्रीवास्तव, खड़गपुर (प.बं.)

*

लोकल कंपनी का डिटर्जैंट पाउडर बेचने वाला एक सेल्समैन आएदिन हमारे घर आ धमकता. डोरबैल बजा कर परेशान करता. उसे तमाम बार समझाया किंतु उस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी. मना करने पर भी वह लगातार आग्रह करता कि मैडमजी, ले लो बहुत अच्छा पाउडर है. एक बार उपयोग कर के तो देख लो. मैं उसे यह कह कर टालती रहती कि घर में पति नहीं हैं. वे होते तो ले लेती. वह उस वक्त तो चला जाता लेकिन एकदो दिन बाद फिर आ धमकता.

शाम को मेरे पति जब घर लौटे तो मैं ने उस सेल्समैन की करतूत से उन्हें अवगत कराया. वे भी परेशान हो गए. अंत में आपसी विचारविमर्श के बाद हम दोनों ने एक योजना बनाई. एकदो दिन बाद जैसे ही वह सेल्समैन आया तो उसे हम ने सादर घर के अंदर बुला लिया. पानी वगैरा पिला कर उस से कहा कि आज आप के डिटर्जैंट पाउडर के सारे पाउच ले लेंगे. मेरे पतिदेव ने बोला है. अभी वे घर में नहीं हैं, आते ही होंगे.

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