मेरी कालोनी में घरों के बाहर सड़क पर झाड़ू लगाने और नाली साफ करने के लिए एक महिला व उस का पति आता था. कभीकभी उन के साथ 2 बच्चे भी आते थे. एक दिन दोपहर को मेरे घर की घंटी बजी. देखा, दोनों बच्चे खड़े थे, ‘‘आंटी, कुछ खाना दे दीजिए.’’ मैं ने उन्हें मना कर दिया, तभी पड़ोस की महिला निकली और उन्हें बुला कर खाने का सामान दिया. मैं ने उन्हें मना किया कि इस तरह से खाने का सामान दे कर इन की आदत मत खराब कीजिए. पर उन पर तो दानधर्म का भूत सवार था, वे मानी नहीं. अन्य परिवार वाले भी देखादेखी खाना दे देते थे. एक दिन दोपहर को बड़ा होहल्ला मचा. उन बच्चों के मातापिता बाहर खड़े खूब चिल्ला रहे थे कि हमारे बच्चों को आप लोगों ने कल कैसा खाना दिया कि कल से दोनों को खून के उलटीदस्त लगे हुए हैं, अस्पताल में पड़े हैं दोनों. उन के चिल्लाने से सब घबरा गए.

वे लोग बच्चों के इलाज के लिए पैसा मांग रहे थे. आखिरकार, उन परिवारों ने एक हजार रुपए एकत्रित कर के उन्हें दिए वरना वे पुलिस के पास जाने की धमकी दे रहे थे.

उन के जाने के बाद सब पड़ोस की महिलाएं मेरे पास आईं और बोलीं, ‘‘हम लोगों ने तो उन्हें कुछ भी ऐसा खाने को नहीं दिया था जो बासी हो या खराब हो, हम सच कहते हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं ने आप को चेताया था, पता नहीं बच्चे बीमार भी थे या नहीं? किसे पता? क्या पता वे झूठ बोल रहे हों? उन को तो पैसे ऐंठने थे, पैसे ले कर चले गए.’’ उस दिन के बाद वे बच्चे और वे पतिपत्नी कालोनी में कहीं नहीं दिखे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...