मैं अपने 4 वर्ष के बेटे को आया शीला के भरोसे छोड़ कर कालेज जाती थी. 5 बजे जब कालेज से आती तो आया जिस का नाम शीला था तभी अपने घर वापस जाती. बच्चों की बोर्ड की प्रैक्टिकल परीक्षा होनी थी. उस दिन मुझे 6 बज गए. परीक्षक महोदय देर लगा रहे थे. मैं ने उन से कहा भी कि मैं अपने छोटे बेटे को घर में आया के भरोसे छोड़ कर आई हूं. फिर मैं ने आया को फोन किया और कहा, ‘‘शीला जब तक मैं घर न आ जाऊं, तुम अपने घर मत जाना. बाबू को कुछ खिलापिला दो और उसे जगाए रखना जब तक मैं न आ जाऊं.’’

शीला बोली, ‘‘मेमसाहब, बाबू आप को बहुत याद कर रहा है. मैं बाबू के पास ही हूं. आप के आने के बाद ही मैं घर जाऊंगी.’’

फिर वह बोली, ‘‘मेमसाहब, जैसे आप को अपने बाबू की चिंता है, उसी तरह मुझे भी अपने बेटे की चिंता है. मैं अपने बेटे को पड़ोसिन के पास छोड़ कर आती हूं. वह 5 बजे के बाद मेरा इंतजार करता है. मेरी पड़ोसिन उसे समझाबुझा कर खाना खिला देगी और सुला भी देगी.’’ फोन रखने के बाद मैं सोचने पर मजबूर थी कि मेरी और उस की नौकरी में कितनी समानता है. मैं अपना बच्चा आया के भरोसे छोड़ कर आती हूं और वह अपना बच्चा पड़ोसिन के पास छोड़ कर निश्ंिचत होती है.    

उपमा मिश्रा

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हमें अपनी सर्विस के दौरान मजदूरों से लोडिंग व अनलोडिंग का काम करवाना पड़ता था. सरकारी विभाग के अनुसार दोनों टाइम 20 मिनट का टीब्रैक होता था. जिस में मजदूर कार्य छोड़ कर चाय, नाश्ता, करने आदि को चले जाते थे. सिर्फ हमें ही कार्यस्थल पर निगरानी के बतौर (अपनी जिम्मेदारी समझते हुए) रहना पड़ता था. मजदूर 20 मिनट के बजाय आधे घंटे के बाद ही वापस आते थे. पूछने पर वे कहते, ‘‘साहब, हमारे पास घड़ी नहीं है. कोई कहता, बीड़ी पीने में देर हो गई.’’

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