मेरी चचेरी बहन की शादी थी. चाची की एक बहुत पक्की सहेली थीं, जिन्हें सब ‘चंद्रा की मम्मी’ के नाम से संबोधित करते थे. वे हमेशा चाची के साथ रहती थीं. शादी के समय जयमाला होने के बाद चंद्रा की मम्मी ने चाची से कहा कि वे चंद्रा को लेने घर जा रही हैं, आधे घंटे में वापस आ जाएंगी. चाची ने हां कहा और लोगों से बातचीत में लग गईं. चंद्रा की मम्मी दरवाजे के किनारे रखी हुई चप्पलों में से अपनी चप्पलें देखने लगीं. जब कुछ देर चप्पल नहीं मिली तो मैं ने कहा कि चंद्रा की मम्मी आप मेरी चप्पल पहन कर चली जाइए. चप्पल न मिलने से चंद्रा की मम्मी की आंखें भर आई थीं. वे कहने लगीं, ‘‘बेटी, अभी परसों ही मैं ने अमीनाबाद से 500 रुपए में चप्पलें खरीदी थीं. एकदम नई थीं.’’ इतने में चाची वहां आईं और कहने लगीं, ‘‘अरे चंद्रा की मम्मी, तुम अभी यहीं हो, गई नहीं?’’  ‘‘अरे उर्मिला (चाची), हमारी चप्पलें नहीं मिल रहीं.’’ ‘‘ऐसा अभी ही होना था. लो हमारी चप्पलें पहन लो,’’ चाची बोलीं. ‘‘अरे, यही तो हमारी चप्पलें हैं,’’ चंद्रा की मम्मी बोलीं. दरअसल, चाची ने बरात आते समय जल्दबाजी में दरवाजे पर सामने रखी हुई चंद्रा की मम्मी की चप्पलें पहन ली थीं.

- अपर्णा किशोर फड़के, नागपुर (महा.) 

मेरे गांव में पिछले साल सूखा पड़ गया. गांव के सभी किसान सूखे की चपेट में आ गए. कुछ लोग गांव छोड़ कर शहर की ओर जाने लगे. सूखू भी गांव छोड़ कर शहर जाना चाहता था परंतु पैसा न होने के कारण रुका हुआ था. महाजन से पहले ही बहुत उधार ले चुका था, सो उधार मिलने की आशा नहीं थी. सरकार ने किसानों की गिरती हालत को देख कर मुफ्त राशन देने की घोषणा की. सूचना मिलते ही ग्रामप्रधान ने सूखू को अपने घर बुलाया और कहने लगे, ‘‘क्या तुम शहर नहीं जाना चाहोगे?’’ सूखू बोला, ‘‘मेरे पास गिरवी रखने को कुछ भी नहीं है. पैसे का इंतजाम कैसे होगा?’’ ग्रामप्रधान बोले, ‘‘अपना राशनकार्ड गिरवी रख दो. तुम शहर चले जाओगे तो वह यहां बेकार पड़ा रहेगा. लौट कर आओगे तो उसे ले लेना.’’ सूखू ग्रामप्रधान की मेहरबानी से बड़ा ही खुश हुआ और ग्रामप्रधान खुश था कि उस के हिस्से के राशन को बेच कर वह अपना हिसाब पूरा करेगा. 

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