मूंगफली को गरीबों का बादाम कहा जाता है, कारण है मूंगफली के दानों में बादाम सी पौष्टिकता होना. बादाम जहां बहुत महंगा मेवा है, वहीं मूंगफली सस्ती व सर्वसुलभ होती है. अब तो मूंगफली के भुने हुए दानों के पैकेट अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने भी बेचने शुरू कर दिए हैं. दालमोठ, मिठाई व गुड़पट्टी में तो इसे मिला कर पहले से ही बनाया जा रहा है. मूंगफली की खेती बहुत पहले पेरु में की जाती थी. पेरु से ब्राजील, पुर्तगाल व स्पेन होते हुए यह चीन पहुंची और चीन से भारत के बंगाल में आ कर लहराने लगी, इसलिए बंगाल में मूंगफली को चीनी बादाम कहा जाता है. दक्षिणभारत में मूंगफली के बीज फिलीपींस से आए इसलिए वहां इसे मनीलाकोटि के नाम से जाना जाता है.

पेरु की राजधानी लिमा के पास एक शहर है, पकाका मैक. यहां सैकड़ों साल पहले एक अधिकारी, कुछ कब्रें खुदवा रहा था कि अचानक एक बरतन में लंबे, टेढ़ेमेढ़े बीज दिखाई दिए, जिन्हें देखते ही वह चीख पड़ा. बाद में इन बीजों को बालुई मिट्टी में बोया गया तो कुछ समय बाद हरेहरे बेलनुमा पौधे लहरा उठे. इस तरह पेरु में मूंगफली का जन्म हुआ. कोलंबस ने जब नई दुनिया की खोज की तब तक मूंगफली की खेती पेरु के अलावा ब्राजील में भी होने लगी थी. 1513-14 तक मूंगफली की खेती स्पेन, पुर्तगाल, ऊरुग्वे, बोलेविया, अर्जेंटीना, पेरागुवे तक फैल चुकी थी. स्पेन व पुर्तगाल के सौदागर इसे पूरी दुनिया में पहुंचाने में लगे थे. जावा, सुमात्रा, जापान, चीन से होते हुए मूंगफली भारत आई. भारत में मूंगफली का आगमन 16वीं शताब्दी में हुआ.

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