केंद्र सरकार देश की अर्थव्यवस्था को संभाल नहीं पा रही है. उस की दोषपूर्ण आर्थिक नीति के चलते रुपया गिरने का रिकार्ड बना रहा है. हालत यह हो गई है कि भारतीय रुपया अब सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली एशियाई करेंसी बन गया है. रुपये के गिरते रहने से देशवासी चिंतित हैं. जो भारतीय स्टूडेंट्स पढ़ाई के लिए विदेश जाने की सोच रहे हैं उन पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है चूंकि वहां की फीस का भुगतान डौलर में करना पढ़ता है.

कभी 48-50 रुपए के बीच झूलने वाला डौलर आज 70 रुपये के ऊपर दौड़ रहा है.  वहीं, रुपए के रिकॉर्ड लो लेवल (निचले स्तर) पर आने से फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआई) को दोहरा झटका लगा है.  एक तो इस से उन के पोर्टफोलियो की वैल्यू डौलर में कम हुई, दूसरे सरकार ने बजट में विदेशियों को रुपए में मिलने वाले रिटर्न पर कैपिटल गेन्स टैक्स लगाने की बात कही थी. इस से उन की परेशानी अब दोहरी हो गयी है.

दरअसल,  पिछले वित्त वर्ष तक विदेशी निवेशक डौलर रिटर्न पर कैपिटल गेन्स (सीजी) टैक्स चुकाते थे. सरकार ने इस साल के बजट में चुपचाप इसे वापस ले लिया और इस की जगह पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (एल टी सी जी) टैक्स लगा दिया. उस वक्त विदेशी निवेशकों ने सरकार के इस कदम का विरोध नहीं किया था क्योंकि तब रुपया मज़बूत था.  लेकिन, वित्त वर्ष 2018  में अब डौलर के मुकाबले रुपये में 16 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. इस से रुपये में हुए मुनाफे पर उन्हें अधिक टैक्स चुकाना पड़ेगा.

मनी मार्केट के जानकारों का मानना है कि रुपये में रिकोर्ड लो लेवल से रिकवरी, वह भी थोड़ी बहुत, हो सकती है लेकिन वह टिकाऊ नहीं होगी. कच्चे तेल के दाम में तेजी और रुपये की रिकार्ड गिरावट के भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को लेकर निवेशक आशंकित हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...