भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानि ट्राई की लाख कोशिशों के बाद मोबाइल कंपनियां उपभोक्ताओं को इंटरनेट की सही स्पीड नहीं दे पा रही है. केन्द्र सरकार के प्रयासों के बाद भी काल ड्राप का मसला हल नहीं हुआ है. इंटरनेट डेटा और फोन बैलेंस की आड में प्रीपेड मोबाइल धारक करोड़ों उपभोक्ताओं को मोबाइल कंपनियों की ठगी का शिकार होना पड़ रहा है. मोबाइल इटरनेट प्लान के नाम पर केवल प्राइवेट कंपनियां ही नहीं, भारतीय दूरसंचार निगम यानि बीएसएनएल भी सबसे आगे है. जो प्रीपेड मोबाइल उपभोक्ता बीएसएनएल के नेटवर्क का प्रयोग कर रहे हैं, उनको सचेत रहने की जरुरत है. बीएसएनएल नेटवर्क का प्रयोग करने वाले उपभोक्ता का इंटरनेट प्लान जब खत्म हो जाता है तो उसका इंटरनेट फोन के बैलेंस से चलने लगता है. कई बार यह बैलेंस खत्म होने के बाद भी चलता है. जब उपभोक्ता रिचार्ज कराता है तो बैलेंस कट जाता है.

उपभोक्ता का फोन बैलेंस जब खत्म हो जाता है तो वह अपना इंटरनेट रिचार्ज कराता है. तब इस इंटरनेट रिचार्ज के बाद उसका इंटरनेट नहीं चलता और वह कस्टमर केयर पर बात करता है तो उसे बताया जाता है कि फोन बैलेंस खत्म हो गया है. ऐसे में पहले उसे फोन का बैलेंस डलवाना पड़ेगा. ऐसे में उपभोक्ता को इंटरनेट रिचार्ज और बैलेंस रिचार्ज के लिये एक साथ मजबूर होना पड़ता है.

बीएसएनएल की ठगी का यह हाल है कि जब तक इंटरनेट डेटा रिचार्ज पर चलता है उसकी स्पीड काफी धीमी रहती है. जैसे ही इंटरनेट रिचार्ज खत्म होता है और इंटरनेट फोन बैलेंस पर चलने लगता है उसकी गति तेज हो जाती है. यही नहीं इंटरनेट रिचार्ज के मुकाबले बैलेंस रिजार्च पर इंटरनेट मंहगा चलता है. ऐसे में उपभोक्ता को अनजाने में मंहगी दर में इंटरनेट का भुगतान करना पडता है. बीएसएनएल इस पूरे मसले पर खुद को गलत साबित करने की जगह पर उपभोक्ता को ही सलाह देता है कि वह जागरुक उपभोक्ता नहीं है.

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