इस कैलेंडर वर्ष में जनवरी से मई की पांच माह की अवधि में मकानों की बिक्री 41 प्रतिशत गिरकर 1.10 लाख इकाई रह गई. यह आंकड़ा देश के 42 प्रमुख शहरों का है. नोटबंदी के बाद से संपत्ति क्षेत्र में मांग सुस्त बनी हुई है. एक साल पहले इसी अवधि में जब मांग ठीकठाक थी 1.87 लाख इकाइयों की बिक्री की गई. रीयल एस्टेट क्षेत्र पर नजर रखने वाली कंपनी प्राप-इक्विटी ने यह जानकारी दी है.
 
रीयल एस्टेट क्षेत्र में इस समय पिछले कई सालों का मंदा चल रहा है. दूसरी तरफ यह भी समस्या है कि कुछ राज्यों में अवैध रेत खनन पर सरकार की सख्ती के कारण आमलोगों के साथ ही डेवलपर्स को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा. यही वजह है कि कई आवास परियोजनाओं में देरी हो रही है और इसके परिणामस्वरूप खरीददार परेशान हो रहे हैं. उन्हें अपना फ्लैट पाने के लिए मजबूरन अदालती रास्ता अपनाना पड़ रहा है. नोटबंदी के बाद से आवास क्षेत्र की मांग पर ज्यादा असर पड़ा है.
 
हालांकि, इस दौरान सस्ते आवास वर्ग में मांग कुछ सुधरी है. सरकार की ओर से इस श्रेणी में कुछ सुविधाएं दिए जाने और सस्ती दरों पर कर्ज उपलब्ध होने से इस वर्ग में मांग बढ़ी है. सरकार ने सस्ते मकानों की परियोजनाओं को ढांचागत क्षेत्र का दर्जा दिया है और ब्याज सहायता भी दी गई. प्राप इक्विटी के संस्थापक और सीईओ समीर जासूजा ने कहा, ‘जनवरी-मार्च अवधि में मकानों की बिक्री कम रही है. नोटबंदी के बाद से बाजार की चाल लगातार धीमी बनी हुई है.’ उन्होंने कहा इस दौरान नए मकानों की परियोजनाओं में भी 62 प्रतिशत की गिरावट आई है.
 
पहले पांच माह के दौरान केवल 70450 फ्लैट के लिए परियोजनाएं शुरू की गईं जबकि पिछले साल इसी अवधि में 1,85,820 फ्लैट के लिए आवास परियोजनाएं शुरू की गईं. जासूजा का कहना है कि नोटबंदी के बाद से रीयल एस्टेट क्षेत्र संकटपूर्ण दौर से गुजर रहा है. इस दौरान लेनदेन गतिविधियों में काफी गिरावट आई है. देश में रीयल एस्टेट (नियमन और विकास कानून) के लागू होने से डेवलपर्स पहले शुरू की गई परियोजनाओं को पूरा करने पर ध्यान दे रहे हैं क्योंकि देर करने पर उन्हें जुर्माना भुगतना पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि माल व सेवाकर (जीएसटी) और नए रीयल्टी कानून से उपजी मौजूदा स्थिति के सामान्य होने तक कुछ और समय आवास व रीयल्टी क्षेत्र का बाजार सुस्त बना रहेगा.

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