गुजरात के अमरेली जिले के राजुला शहर में रिलायंस के एक शिपयार्ड में काम करने वाले लगभग 200 वेंडरों को कंपनी ने वर्ष 2015 से भुगतान नहीं किया है. उस वर्ष अनिल अंबानी के रिलायंस समूह ने देश की सबसे बड़ी पोत निर्माण कंपनी पीपावाव डिफेंस एंड औफशोर इंजीनियरिंग लिमिटेड को खरीदा था. बिकवाली के वक्त पीपावाव दिवालिया होने के कगार पर थी और उसके ऊपर 6000 करोड़ रुपए का कर्ज था. कंपनी के बिकने के बाद उसका सारा कर्ज भी रिलायंस के जिम्मे आ गया. राजुला से कांग्रेस के विधायक अंबरीश डेर की एक सूची के अनुसार सितंबर 2018 तक रिलायंस के ऊपर 191 वेंडरों का कुल 71 करोड़ 79 लाख रुपए बकाया है.

मेरी बातचीत में कई वेंडरों ने बताया कि शुरू में रिलायंस द्वारा पीपावाव को खरीदने की खबर से वे लोग खुश हुए थे. उन्होंने कहा कि 2012 तक भुगतान में कमी होने लगी थी लेकिन पीपावाव के संस्थापक-प्रमोटर निखिल गांधी और भावेश गांधी उन लोगों को बकाया का कुछ हिस्सा देते रहते थे. रिलायंस के अधिग्रहण करने के बाद वेंडरों का भुगतात या तो सीमित कर दिया गया या उसे पूरी तरह से ही रोक दिया गया. इसके तीन साल बाद कई बैंकों ने रिलायंस नेवल एंड इंजीनियरिंग लिमिटेड (आरनेवल) के खिलाफ कर्ज उगाही कार्यवाही आरंभ की. वेंडर दावा कर रहे हैं कि रिलायंस पर उन लोगों की बहुत बड़ी रकम बकाया है.

इन वेंडरों में वे बिक्रेता और ठेकेदार हैं जो शिपयार्ड में काम के लिए केबल तार और बिजली के पैनल आदि की आपूर्ति करते हैं एवं यार्ड में काम के लिए मजदूर उपलब्ध कराते हैं. बजरंग कंस्ट्रक्शन के शिवा भाई वाघ ने बताया कि 2008 से उनकी कंपनी फैबरिकेशन का काम ले रही है. वो बताते हैं कि “2012 से भुगतान कम होने लगा था.” उन्होंने आगे कहा, “जब से रिलायंस आया ना, अनिल अंबानी, तब से तो वाट ही लग गई.” डेर की सूची के अनुसार रिलायंस पर वाघ कंपनी का 72 लाख रुपए बकाया है.

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