सब का सपना, घर हो अपना.  यह सपना कुछ का जिंदगीभर सपना ही रह जाता है तो कुछ सपने को पूरा करने  के लिए अपनी खूनपसीने की कमाई लगा कर धोखाधड़ी का शिकार बन कर रह जाते हैं.  वहीं, कुछ जमीन समेत घर या फ्लैट की कीमत का भुगतान कर अपना निवास मिलने का इन्तजार करते दिखते हैं. उधर, कुछ बिल्डर्स धोखेबाज हैं तो कुछ ग्राहकों की रकम का गलत इस्तेमाल करते रहते हैं. वहीं, कुछ बिल्डर्स सरकारी खानापूर्ति के चलते ग्राहकों को समय पर उन का निवास नहीं दे पाते. बिल्डर्स की अपनी दिक्कतें भी हैं.

खरीदार पैसा देता है तो उसे मकान/फ्लैट चाहिए ही.  बिल्डर्स को अपनी अड़चनों को खुद, कैसे भी हो, दूर कर खरीदार को समय पर घर मुहैया कराना चाहिए. ऐसा न होने के चलते संबंधित मामले कोर्ट तक पहुंचते हैं, सरकार को दखल देना पड़ता है आदि.

काफी अरसे से प्रौपर्टी बाजार में सुस्ती देखी जा रही है. तकरीबन पूरे देश सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के खरीदारों की प्राथमिकताएं अब बदली हैं. एक सर्वे के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में प्रौपर्टी ढूंढने वाले 94 फीसदी लोग या तो रेडी टू मूव इन मकान/फ्लैट खरीदना चाहते हैं या ऐसे निर्माणाधीन फ्लैट जो 6 महीने के भीतर कम्प्लीट होने वाले हैं. इन में से 48 फीसदी खरीदार तो पूरी तरह तैयार फ्लैट ही खरीदना चाहते हैं.

मकान खरीदारों के इस रुझान के पीछे एनसीआर, खासकर नोएडा में पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्रोजेक्ट डिलीवरी का खराब रिकौर्ड तो है ही, रेडी टू मूव इन प्रौपर्टी पर जीएसटी न लगना भी एक बड़ा कारण बताया जा रहा है. इस के साथ ही, रेडी टू मूव इन और निर्माणाधीन फ्लैट्स की कीमतों के बीच अंतर अब काफी कम हो गया है, इसलिए भी लोग बने बनाए फ्लैट खरीदने को प्राथमिकता दे रहे हैं.

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