नीति आयोग का मानना है कि देश की जटिल हो रही अर्थव्यवस्था को संभालने में आर्थिक नीति निर्धारण के लिए अब सिर्फ भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस से काम नहीं चलेगा. नीति निर्धारण संस्थाओं में बाहर से विशेषज्ञ बुला कर आईएएस की मदद की जानी चाहिए और आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों को संयुक्त सचिव के स्तर पर संविदा के तहत नियुक्ति दी जानी चाहिए.

आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था जिस तेजी से बढ़ रही है और दिनप्रतिदिन उस में जो जटिलताएं आ रही हैं उन्हें सामान्य आईएएस अधिकारी के जरिए नहीं, विशेषज्ञ की नियुक्ति कर के ही सुलझाया जा सकता है. इन नियुक्तियों से आईएएस अधिकारियों में भी प्रतिस्पर्धा आएगी और वे अपनी प्रतिभा को विशेष क्षेत्र के विशेषज्ञ के रूप में धार देंगे.

हाल ही में सरकार ने आयुर्वेद के एक डाक्टर को आयुष मंत्रालय में विशेष सचिव नियुक्त किया है. शीर्ष पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति की शुरुआत हो गई है. इन पदों पर अब तक आईएएस ही जमे रहते थे. विशेष क्षेत्रों के लिए जल्द ही 50 विशेषज्ञों की नियुक्ति हो सकती है. उन के चयन के लिए प्रक्रिया चल रही है.

इसी तरह से बैंकिंग क्षेत्र में सुधार के लिए निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को लाने की नीति बन रही है. यह ठीक भी है. जब सरकारी क्षेत्र के विशेषज्ञों को सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्त कर निजी दूरसंचार कंपनियां जबरदस्त लाभ अर्जित कर सकती हैं तो सरकारी क्षेत्र में निजी क्षेत्र के महारथियों को लेने से परहेज क्यों है. इस पहल से आईएएस लौबी में खलबली जरूर है लेकिन सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने उन की नहीं चलेगी.

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