भारतीय अर्थव्यवस्था को ले कर इन दिनों तरहतरह के अध्ययन किए जा रहे हैं. विश्व की बड़ी रेटिंग एजेंसियां तथा आर्थिक सर्वेक्षण कराने वाली संस्थाएं यह अनुमान लगाना चाहती हैं कि भारत में नोटबंदी का असर अर्थव्यवस्था पर किस तरह से होगा. उसी क्रम में वैश्विक स्तर पर संपत्ति संबंधी सर्वेक्षण कराने वाली ज्यूरिख की वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनी क्रैडिट सुइस गु्रप एजी ने हाल ही में जारी एक सर्वेक्षण में कहा है कि भारत में एक प्रतिशत धनी लोगों के पास देश की 58.4 फीसदी संपत्ति है.

इस संस्था ने कहा है कि भारत में एक फीसदी धनाढ्य लोगों के पास 2014 को 49 प्रतिशत की तुलना में उन की संपत्ति इस बार 58.1 प्रतिशत पहुंच गई है. मतलब कि शेष भारतीयों के पास 41.6 प्रतिशत संपत्ति है. बड़ी आबादी को इस पर ही गुजारा करना है जबकि महज एक फीसदी आबादी के पास देश की 99 फीसदी आबादी से भी ज्यादा संपत्ति है. 2001 की तुलना में 2016 में इस आबादी की हिस्सेदारी अत्यधिक बढ़ी है. मतलब कि 16 साल पहले उन की धन संपत्ति की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत के आसपास थी लेकिन आज इस में 20प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

दुनिया के अन्य देशों में भी गरीब तथा अमीर हैं लेकिन जो खाई भारत के गरीबों तथा अमीरों के बीच है वह शायद किसी अन्य विकासशील देश में देखने को नहीं मिलती है. इस का प्रमाण यह सर्वेक्षण है. इस से स्पष्ट है कि देश की एक फीसदी आबादी किस तरह से 99 प्रतिशत लोगों पर भारी पड़ रही है. देश में असंख्य लोग हैं, जो रात को भूखे ही सोते हैं और रातें खुले आसमान के नीचे बिताते हैं. उन की स्थिति में सुधार का प्रयास नहीं हो रहा है, जबकि अमीर लगातार देश की संपत्ति को हर रहा है.                       

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