भारीभरकम कर्जों के कारण डूब रहे बैंकों की गैर विवादित राशि (एनपीए) लगातार बढ़ रही है और उन के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हो रहा है. सरकार भी इस से परेशान है. उस ने पंजाब नैशनल बैंक के प्रमुख नेतृत्व में एक समिति गठित कर दी है, जो एनपीए से निबटने के बारे में उपाय सुझाएगी. सरकार को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि एनपीए लगातार बढ़ रहा है.

पिछले वर्ष यह 11.8 फीसदी था जो इस साल बढ़ कर 12.2 फीसदी तक पहुंच सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि इस स्थिति से सुधार असंभव है. रिजर्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस साल के अंत तक कुछ बैंकों का एनपीए अत्यधिक बढ़ सकता है. इन में आईसीआईसीआई बैंक, सैंट्रल बैंक, बैंक औफ इंडिया, यूको बैंक, ओवरसीज बैंक, देना बैंक, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स, बैंक औफ महाराष्ट्र, यूनाइटेड बैंक, इलाहाबाद बैंक सहित कुल 11 बैंकों के नाम शामिल हैं. इन बैंकों का एनपीए 21 प्रतिशत से बढ़ कर 23 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. यह एनपीए बैंकिंग क्षेत्र के लिए बड़े संकट का कारण बन सकता है.

सरकारी क्षेत्र के आईडीबीआई बैंक की हालत सब से खराब बताई जा रही है. इस के लिए तो सरकार ने उपाय खोज लिया है. भारतीय जीवन बीमा निगम पर इस के 51 प्रतिशत शेयर खरीदने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. यह परंपरा ठीक नहीं है. लूटपाट का शिकार हो रहे सरकारी संसाधनों को इस तरह से बचाना गलत है. सरकार के इस कदम की राजनीतिक स्तर पर खूब आलोचना हो रही है. बीमार इकाइयों को सख्त बनाने की प्रक्रिया से स्वस्थ इकाई को बीमार करने का प्रयास अनुचित होगा.

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