निवेश पर रिटर्न दो तरह के होते हैं- शौर्ट टर्म और लांग टर्म. आपके पास निवेश के लिए ज्यादा समय नहीं है तो वहां शौर्ट टर्म रिटर्न की जरूरत होगी. संपत्ति बनाने के लिए लांग टर्म रिटर्न चाहिए. सवाल है कि इन दोनों में संतुलन कैसे बनाया जाए. यहां इसके कुछ टिप्स हैं.

ट्रेडिंग और निवेश को अलग रखें : अगर आप शौर्ट टर्म के लिए स्टॉक में निवेश कर रहे हैं तो यह चिंता मत कीजिए कि 20 साल में इंडस्ट्री कैसे चलेगी. आपको कम समय में कमाई के मौके देखने चाहिए. लेकिन अगर रिटायरमेंट के लिए निवेश कर रहे हैं तो रोज के उतार-चढ़ाव की परवाह मत कीजिए. बड़ी बातों पर गौर कीजिए. मसलन, क्या कंपनी का बिजनेस मॉडल टिकाऊ है, क्या मैनेजमेंट कंपनी को आगे ले जाने में सक्षम है, और सबसे बड़ी बात क्या कॉरपोरेट गवर्नेंस के स्टैंडर्ड इतने ऊंचे हैं कि कंपनी की वैलुएशन लंबे समय तक बनी रहे?

कम समय के रिटर्न से सालाना रिटर्न न निकालें : शौर्ट टर्म में कुछ खास मौकों के कारण रिटर्न मिलता है. ये मौके लांग टर्म में टिकाऊ नहीं होते. किसी शेयर में आपको एक हफ्ते में 10% रिटर्न मिल गया तो इसका मतलब यह नहीं कि उस आधार पर एक साल का रिटर्न निकालें. ऐसा होता तो आपकी रिटायरमेंट की जरूरत के लायक रकम सालभर में ही मिल जाती. इसलिए शौर्ट टर्म रिटर्न को अलग इवेंट के तौर पर देखा जाना चाहिए.

शौर्ट टर्म के लिए मोमेंटम पर फोकस करें : शौर्ट टर्म में रिटर्न स्टॉक के मोमेंटम पर निर्भर करता है. इसलिए इस पर फोकस करना चाहिए. 3 साल से फार्मा शेयरों की कीमत कम लग रही है. इसके बावजूद इनमें गिरावट होती रही. जून 2018 से इनमें ग्रोथ की मोमेंटम दिख रही है. इसलिए अगर आप ट्रेडिंग कर रहे हैं तो जून 2018 में आए इस मोमेंटम पर गौर करें. खास कीमत पर कोई स्टॉक अच्छा हो सकता है, लेकिन जब तक मोमेंटम उस स्टॉक के पक्ष में न हो या कोई खास खबर न हो तब तक शौर्ट टर्म रिटर्न के लिए उसमें निवेश नहीं करना चाहिए.

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