प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के एक दिन बाद पेटीएम जैसी निजी कंपनी ने अखबारों के पहले पेज पर बड़े विज्ञापन दिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के एक दिन बाद पेटीएम जैसी निजी कंपनी ने अखबारों के पहले पेज पर बड़े विज्ञापन दिए तो कई लोग तत्काल समझ नहीं पाए कि उन विज्ञापनों का आशय क्या है.

लेकिन यह जल्दी से समझ आ गया कि यह औनलाइन कारोबार करने वाली कंपनी नकदी की कमी का फायदा उठाना चाहती है. इस के साथ ही मोबिक्विक, फ्रीचार्ज तथा इट्जकैश जैसी कंपनियों का कारोबार रातोंरात बढ़ने लगा. पेटीएम ने सर्वाधिक फायदा कमाया और उस के ग्राहकों की संख्या देश के सब से बड़े स्टेट बैंक औफ इंडिया के ग्राहकों से आगे निकल गई.

औनलाइन कंपनियों में लाभ कमाने की होड़ लग गई लेकिन नैशनल पेमैंट कौर्पोरेशन औफ इंडिया यानी एनपीसीआई की औनलाइन भुगतान कंपनी यूनाइटेड पेमैंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई में उस का ज्यादा असर नहीं हुआ. यह पेटीएम की तरह सरकारी क्षेत्र की औनलाइन भुगतान कंपनी है जिस के जरिए सरकार सारे भुगतान औनलाइन करने की प्रक्रिया अपनाना चाहती है.

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के दिमाग की यह कल्पना इस वर्ष अप्रैल में सामने आई और अगस्त में उस की शुरुआत कर दी गई लेकिन औनलाइन भुगतान का यह सरकारी उपक्रम अब तक कोई रंग नहीं दिखा सका. यूपीआई, दरअसल, सरकारी क्षेत्र का सफेद हाथी है जिस पर रंग सरकारी योजनाओं के अनुसार चढ़ सकता है. इस कंपनी में सबकुछ है लेकिन कर्मचारियों को काम नहीं करना पड़े और यूपीआई सफेद हाथी बना रहे, कंपनी के अधिकारी इसी फिराक में जुटे हैं. वरना ई-कौमर्स के इस दौर में यह कंपनी भी दौड़ती होती और सरकार को फायदा दे रही होती, साथ ही आम नागरिक के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा विश्वसनीय भी बनती.

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