एनपीए यानी नौन परफौर्मिंग एसेट की राशि के बढ़ कर भारीभरकम होने से देश की बैंकिंग प्रणाली चरमरा गई है. सार्वजनिक बैंकों से हजारों करोड़ रुपए डकार कर कर्जदार विदेशों में मौज कर रहे हैं और भारतीय बैंकों पर कर्ज के कारण एनपीए में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. इस समय सरकारी बैंकों का औसत एनपीए 12.13 प्रतिशत है. सरकार चरमराती बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए फंसा हुआ कर्ज वापस लेने के सख्त प्रयास नहीं कर रही है बल्कि वह बैंकों के विलय का सस्ता रास्ता निकाल कर इस की भरपाई का प्रयास कर रही है.

कुछ समय पहले देश के सब से बड़े बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया के साथ उस के सहयोगी 5 बैंकों का विलय किया गया और अब सरकार ने बैंक औफ बड़ौदा के साथ देना बैंक व विजया बैंक के विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है विलय के बाद यह बैंक देश का दूसरा सब से बड़ा बैंक बन जाएगा. यह बैंक दक्षिण भारत में अच्छा काम करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि विलय के बाद बैंक का नाम बदल सकता है लेकिन इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया गया है.

फंसे कर्ज के कारण खस्ताहाल हो चुके बैंकों में विलय की छटपटाहट कैसी है, इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि बैंकों के विलय की घोषणा के एक सप्ताह के भीतर ही देना बैंक के निदेशकमंडल ने इस के विलय को मंजूरी दे दी.

बहरहाल, इस विलय से इन बैंकों का एनपीए बैंकों के 12.13 फीसदी के औसत एनपीए की तुलना में 5.71 फीसदी रह जाएगा. सरकार के इस कदम से बैंकों की हालत सुधरती है तो किसी को गुरेज नहीं लेकिन यदि ढाक के तीन ही पात रहे यानी बैंकों का कर्ज डूबने की प्रक्रिया नहीं रुकी और न बैंकिंग सेवा अच्छी हुई तो यह प्रयास बेकार साबित होगा.

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